Book Title: Bharatiya Sanskriti Ke Vikas Me Jain Vangamay Ka Avdan Part 02
Author(s): Nemichandra Shastri, Rajaram Jain, Devendrakumar Shastri
Publisher: Prachya Shraman Bharati
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भारतीय संस्कृति के विकासमें जैन वाङ्मयका अवदान
'मेरा अनुमान है कि जिस स्थान पर आजकल यह मन्दिर बना है, उस स्थान पर वासुपूज्य स्वामी गर्भ, जन्म, तप और ज्ञान ये चार कल्याण हुए हैं । निर्वाणस्थान तो मन्दारगिरि ही है ।
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चम्पापुरके दो जिनालयोंमेंसे बड़े जिनालयके उत्तर-पश्चिम के कोनेकी वेदीमें श्वेतवर्ण पाषाणकी वासुपूज्य स्वामीकी प्रतिमा है । यह प्रतिमा माघ शुक्ला दशमीको संवत् १९३२ में प्रतिष्ठित की गयी है । इसी वेदी में ५-६ अन्य प्रतिमाएँ भी हैं ।
पूर्वोत्तर के कोनेकी वेदीमें भी मूलनायक वासुपूज्य स्वामी की ही प्रतिमा है, इसकी प्रतिष्ठा भी संवत् १९३२ में ही हुई है। इस वेदीमें दो प्रतिमाएँ पार्श्वनाथ स्वामीकी पाषाणमयी हैं । एक पर संवत् १५८५ और दूसरी पर संवत् १७४४ का लेख अंकित है ।
पूर्व-दक्षिण कोनेकी वेदी में मूलनायक प्रतिमा पूर्वोक्त समयकी वासुपूज्य स्वामीकी है । इस वेदीमें भगवान् ऋषभनाथकी एक खड्गासन प्राचीन प्रतिमा है, जिसमें मध्यमें धर्मचक्र और इसके दोनों ओर दो हाथी अंकित हैं ।
दक्षिण-पश्चिम कोनेकी वेदीमें भी मूलनायक वासुपूज्य स्वामीकी प्रतिमा संवत् १९३२ की प्रतिष्ठित है । इस वेदीमें एक पार्श्वनाथ स्वामीकी पाषाणमयी प्रतिमा जीवराज पापड़ीवाली द्वारा प्रतिष्ठित संवत् १५५४ की है । बीसवीं शताब्दीकी कई प्रतिमाएँ भी इस वेदी में हैं ।
मध्यकी मुख्य वेदी में चाँदीके भव्य सिंहासन पर ४ ।। फुट ऊँची पीतवर्णकी पाषाणमय वासुपूज्य स्वामीकी प्रतिमा है । मूल नायकके दोनों ओर अनेक धातु प्रतिमाएँ विराजमान हैं । बड़े मन्दिर के आगे मुगलकालीन स्थापत्य कलाके ज्वलन्त प्रमाण स्वरूप दो मानस्तम्भ हैं; जिनकी ऊँचाई क्रमशः ५५ और ३५ फीट है ।
मन्दिरके मूल फाटकपर नक्कासीदार किवाड़ हैं । मूल मन्दिरकी दीवालोंपर सुकौशल मुनि उपसर्ग, सीताकी अग्निपरीक्षा, द्रौपदीका चीरहरण आदि कई भव्य चित्र अंकित किये गये हैं । द्रौपदीके चीरहरण और सीताकी अग्निपरीक्षामें दरबारका दृश्य भी दिखलाया गया है । यद्यपि इन चित्रोंका निर्माण हाल ही में हुआ है, पर जैनकलाकी अपनी विशेषता नहीं आ पायी है ।
इस मन्दिरसे आध मील गंगा नदीके नालेके तटपर, जिसको चम्पानाला कहते हैं, एक जैनमन्दिर और धर्मशाला है । इस मन्दिर में नीचे श्वेताम्बरी प्रतिमाएँ और ऊपर दिगम्बर आदिनाथ की प्रतिमा विराजमान हैं। इन प्रतिमाओं में से कई प्रतिमाएँ, जो चम्पानालासे निकली हैं, बहुत प्राचीन हैं । अन्य प्रतिमाओंमें एक श्वेत पाषाणकी १५१५ को प्रतिष्ठित तथा एक मूंगिया रंगके पाषाणकी पद्मासन सं० १८८१ में भट्टारक जगत्कीति द्वारा प्रतिष्ठित है । प्रतिष्ठा कराने वाले चम्पापुरके सन्तलाल हैं । यहाँ अन्य कई छोटी प्रतिमाओंके अतिरिक्त एक चरणपादुका भी है । श्वेताम्बर आगममें इसी स्थानको भगवान् वासुपूज्य स्वामीके गर्भ, जन्म, तप, ज्ञान और निर्वाण इन पंचकल्याणकोंका स्थान माना गया है ।
श्री डब्लू० डब्लू हन्टरने भागलपुरका स्टेटिकल एकाउन्ट देते हुए लिखा है कि जहाँ आजकल चम्पानगरमें जैनमन्दिर है, उस स्थानको ख्वाजा अहमदने सन् १६२२-२३ में आबाद