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भगवान् महावीर
इसके सिवाय यज्ञ करने में बहुत सा धन भी खर्च होता था, जिस यज्ञ में ब्राह्मणों को दक्षिणाएँ न दी जाती थीं वह यज्ञ अपूर्ण समझा जाता था, बड़ी बड़ी दक्षिणाएँ ब्राह्मणों को दी जाती थीं । कुछ यज्ञ तो ऐसे होते थे जिनमें साल साल भर लग जाता था और हजारों ब्राह्मणों की जरूरत पड़ती थी, अतएव जो लोग सम्पतिशील होते थे, वे तो यज्ञादि कर्मों के द्वारा अपने पापों को नष्ट करते थे, पर निर्धन लोगों के लिए यह मार्ग सुगम न था। उन्हें किसी भी प्रकार ब्राह्मण लोग मुक्ति का परवाना न देते थे । इसलिए साधारण स्थिति के लोगों ने आत्मा की उन्नति के लिए दूसरे उपाय ढूँढना प्रारम्भ किये। इन उपायों में से एक उपाय "हठयोग" भी था, उस समय लोगों को यह विश्वास हो गया था कि कठिन से कठिन तपस्या करने पर ऋद्धि सिद्धि प्राप्त हो सकती है। आत्मिक उन्नति प्राप्त करने और प्रकृति पर विजय पाने के निमित्त लोग अनेक प्रकार की तपस्याओं के द्वारा अपनी काया को कष्ट देते थे, पञ्चाग्नि तपना, एक पैर से खड़े होकर एक हाथ उठा कर तपस्या करना, महीनों तक कठिन से कठिन उपवास करना, आदि इसी प्रकार की कई अन्य तपस्याएँ भी इन्द्रियों पर विजय प्राप्त करने के लिए आवश्यक समझी जाती थीं।
इन तपस्याओं के करते करते लोगों का अभ्यास इतना बढ़ गया था कि उन्हें कठिन से कठिन यन्त्रणा भुगतने में भी अधिक कष्ट न होता था। जनता के अन्दर यह विश्वास जोरों के साथ फैल गया था कि यदि यह तपस्या पूर्ण रूपेण हो जाय तो
आदमी विश्व का सम्राट् हो सकता है । यह भ्रम इतनी सत्यता Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com