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भगवान् महावीर
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तुम्हें उचित दण्ड देने की व्यवस्था करूँगा । यह सुन कर एक वृद्ध दासीने यह सोचकर "चन्दना" को बतला दिया कि अब मैं अधिक जीने की नहीं, मेरे इस अल्प जीवन के बदले यदि उस दीर्घजीवी बालिका के प्राण बच जांय तो अच्छा ! सेठ ने उसी समय चन्दना को बाहर निकाला । उसकी ऐसी दुर्गति देख उसकी आंखों में आँसू भर आये । उसने चन्दना से कहा-"वत्से ! तुझे बड़ा कष्ट हुआ अब तू स्वस्थ हो ।” यह कह कर उसके लिए भोजन लाने को वे रसोई घर में गये। पर वहां पर सूपड़े के एक कोने में पड़े हुए थोड़े से कुल्माष के सिवाय उन्हें कुछ न मिला । उस समय चन्दना को उन्होंने वह सूप ज्यों का त्यों दे दिया और कहा "वत्से ! मैं तेरी बेड़ी काटने के लिये लुहार को बुला लाता हूँ, इतने तू इनको खाकर स्वस्थ हो । यह कह कर वह चला गया। . अब दरवाजे के पास उस सूप को लिए हुए चन्दना विचार करने लगी कि "कहां तो मैं राजा की लड़की, और कहां ये कुल्माष-आठ दिनों के उपवास के पश्चात् ये खाने को मिले हैं पर यदि कोई अतिथि आजाय तो उसको भोजन कराये पश्चात्मोजन करूँगी । अन्यथा नहीं । यह सोच कर वह किसी अतिथि की परीक्षा करने लगी। इतने ही में श्रीवीर प्रभु भिक्षा के लिये फिरते फिरते वहाँ आ पहुँचे । उनको देखते ही “चन्दना" बड़ी प्रसन्न हुई । और उनको आहार देने के निमित्त उसने बेड़ी से जकड़ा हुआ एक पैर देहली के बाहर और दूसरा पैर अन्दर रक्खा और बोली-“प्रभु ! यद्यपि यह अन्न आपके योग्य नहीं है
पर आप तो परोपकारी हैं । इससे इसे ग्रहण कर मुझपर अनु. Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com