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चौथा अध्याय
'स्वरूप
जैन तत्व-ज्ञान में "मोक्ष" का बहुत ही विशद और गहन विवेचन किया गया है । इस विषय के विवेचन को आवश्यक समझ हम एक जैन विद्वान् के इसी विषय पर लिखे हुए लेख के आधार से यहां इस विषय पर कुछ प्रकाश डालने की चेष्टा करते हैं। ___ मोक्ष शब्द की व्युत्पत्ति संस्कृत की "मुञ्च" धातु से है। इसका अर्थ सब प्रकार के बन्धनों से छुटकारा पाना है। इस शब्द से ही यह मालूम होता है कि जगत् की तमाम वस्तुएं एक दूसरे के बन्धन में हैं और उस बन्धन से स्वतंत्र हो जाने ही को मोक्ष कहते हैं । मोक्ष पर विचार करने से पूर्व ये प्रश्न सहज ही उत्पन्न हो सकते हैं कि कौन बन्धन में है ? किसके बन्धन में है ? वह बन्धन किस प्रकार होता है, कब से है, उससे छुटकारा पाने की क्या आवश्यकता है ? और वह छुटकारा किस प्रकार हो सकता है ?
* श्रीयुत रघुवर दयाल लिखित और सरस्वती में प्रकाशित "मुक्ति का स्वरूप" नामक लेख के आधारपर लिखित Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com