Book Title: Bhagwan Mahavir
Author(s): Chandraraj Bhandari
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 464
________________ भगवान् महावीर ४५८ पन मरीचि प्रकृतिवादी था, और वेद उसके तत्वानुसार होने के कारण ही ऋगवेद आदि ग्रंथों को ख्याति उसीके ज्ञान द्वारा हुई है फलतः मरीचि ऋषी के स्तोत्र, वेद पुराण आदि ग्रन्थों में हैं और स्थान २ पर जैन तीर्थंकरों का उल्लेख पाया जाता है, तो कोई कारण नहीं कि हम वैदिक काल में जैन धर्म का अस्तित्व न मानें। (४) सारांश यह है कि इन सब प्रमाणों से जैन धर्म का उल्लेख हिन्दुओं के पूज्य वेद में भी मिलता है। (५) इस प्रकार वेदों में जैन धर्म का अस्तित्व सिद्ध करने वाले बहुत से मन्त्र हैं। वेद के सिवाय अन्य ग्रन्थों में भी जैन धर्म के प्रति सहानुभूति प्रकट करने वाले उल्लेख पाये जाते हैं । स्वामीजी ने इस लेख में वेद, शिव पुराणादि के कई स्थानों के मूल श्लोक देकर उस पर व्याख्या भी की है। पीछे से जब ब्राह्मण लोगों ने यज्ञ आदि में बलिदान कर "मा हिंसात सर्व भूतानि" वाले वेद वाक्य पर हरताल फेर दी उस समय जैनियों ने उन हिंसामय यज्ञ योगादि का उच्छेद करना आरम्भ किया था बस तभी से ब्राह्मणों के चित्त में जैनों के प्रति द्वेष बढ़ने लगा, परन्तु फिर भी भागवतादि महापुराणों में रिषभदेव के विषय में गौरवयुक्त उल्लेख मिल रहा है । (२२) अम्बुजाक्ष सरकार एम. ए. बी. एल. लिखित "जैन दर्शन जैनधर्म" जैनहितैषी भाग १२ अङ्क ९-१० में छपा है उसमें के कुछ वाक्य । । (१) यह अच्छी तरह प्रमाणित होचुका है कि जैन धर्म Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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