________________
भगवान महावीर
३५२ सिद्ध-शिला ( जहां मुक्त जीव रहते हैं) के बीच में १६ स्वर्ग हैं । उन स्वर्गों में जीव अपने पुण्योदय से दीर्घायुवाली देव. गति पाकर देव अथवा देवाङ्गना बन कर सांसारिक सुख भोगते हैं, और आयु पूरी होने पर वहां से अपने कर्मानुसार भ्रमण करते हैं। शायद मुक्ति से लौट आना माननेवालों का मतलब ऊपर के स्वर्गों से ही हो और उनको मोक्ष के सच्चे स्वरूप का पता ही न हो।
जैन-धर्म में "सम्यग्दर्शनज्ञानचारित्राणि मोक्षमार्गः" कहा है अर्थात् सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान, सम्यक्चारित्र की एकता ही मोक्षमार्ग है । जितने जितने अंशों में जीव की सच्ची श्रद्धा, सच्चा ज्ञान
और सच्चा चरित्र होता है उतने ही उतने अंशों में जीव मोक्ष की ओर झुकता है। सम्यग्दर्शन से मतलब ऊपर बताये हुए सात तत्त्वों की सच्ची भावना करना है। अर्थात् जीव, परमात्मा
और जीव से परमात्मा होने के उपाय इत्यादि की सच्ची भावना करना, जीव और जीवादिक और जीव के मोक्ष होने के उपायों के ज्ञान को सम्यग्ज्ञान और उन उपायों में प्रवृत्तिरूप क्रियाओं को सम्यक्चारित्र कहते हैं । धर्म दो प्रकार का होता है एक गृहस्थों का दूसरा साधुओं का । गृहस्थ व्यवहार-धर्म का पालन करते हुए निश्चय मोक्षमार्ग को तैयारी करते हैं और साधु इच्छाओं पर सर्वथा विजय पाने के लिए ज्ञान, ध्यान और तप में लीन रहते हैं। धर्म-ध्यान और शुक्ल-ध्यान ही मोक्ष के मुख्य कारण होते हैं और बाकी सब जीव को ध्यान में निश्चल बनाने के उपाय हैं।
ज्ञानवरण-कर्म के प्रभाव से अनन्तज्ञान, दर्शनावरण-कर्म Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com