________________
३७९
भगवान् महावीर से, और अधिकारी रिश्वत से प्रजा का खून चूसेंगे। लोग स्वार्थलोलुप, परमार्थ से विमुख, और सत्य, लज्जा, दया, एवं दाक्षिण्य से रहित हो जायंगे। शिष्य गुरु की आराधना न करेंगे और गुरु भी उनमें शिष्यभाव न रक्खेंगे। धर्म में लोगों की बुद्धि मन्द हो जायगी । पृथ्वी अत्यन्त प्राणियों से आकुल हो जायगी । पुत्र पिता की अवज्ञा करेंगे, बहुएँ सर्पिणी के समान और सासुएँ कालरात्रि की तरह होंगी। कुलीन स्त्रियां भी लज्जा छोड़ कर विकार से, हास्य से, अलाप से अथवा दूसरे प्रकारों से वैश्याओं का अनुकरण करने लगेंगी।। श्रावक
और श्राविका धर्म की भी हानि होगी, चारों प्रकार के संव-धर्म का क्षय हो जायगा । झूठे तौल और झूठे बाटों का प्रचार होगा । धर्म में शठता होगी, सत्पुरुष दुखी और दुर्जन सुखी होंगे । मणि, मंत्र, औषधि, तंत्र, विज्ञान, धन, आयु फल, 'पुष्प, रस, रूप, शरीर की ऊंचाई, धर्म, वृष्टि, और दूसरे शुभ भावों की पञ्चमकाल में दिन प्रति दिन हानि होती जायगी 'और छठे काल में तो यह हानि पराकाष्ठा पर पहुँच जायगी। ___ उपरोक्त कथन की सत्यता इस काल में कितनी प्रमाणित होती जा रही है यह बतलाने की आवश्यकता नहीं। हमारा । कथन केवल इतना ही है कि जैन-शास्त्रों के अन्तर्गत मनुष्य के विकास और हास का जितना विवे धन है उसमें अतिशयोक्ति का कुछ अंश होने पर भी यथार्थता का अधिक अंश है।
Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
www.umaragyanbhandar.com