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भगवान् महावीर
___ अर्थात्-मैंने ऐसासुना है कि एक समय भगवान् (बुद्ध)शाक्यदेश के श्यामगाम में विचरण करते थे। उस समय वहां ज्ञातपुत्र निर्ग्रन्थ भी थे। इन ज्ञातपुत्र के निर्ग्रन्थों में विरोधी भाव हुआ था। उनमें विवाद और कलह हुआ था वे अलग होकर परस्पर बकवाद करते हुए फिरते थे।" ___इस कथन का दिगम्बरियों की पट्टावलि भी समर्थन करती है। श्वेताम्बरों और दिगम्बरों की पट्टावलि में वर्द्धमान, सुधर्मा तथा जम्बू एक ही समान और एक ही क्रम से पाये जाते हैं पर आगे जाकर उनके पश्चात् आने वाले नामों में बिलकुल भिन्नता पाई जाती है और वह भी इतनी कि आगे के एक भी नाम में समानता नहीं पाई जाती। इन पट्टावलियों में पाई जाने वाली नाम विभिन्नता से मालूम होता है कि जम्बू स्वामी के पश्चात् ही इनके जुदे २ आचार्य होने लग गये थे। इन दोनों दलों में उसी समय से धीरे २ द्वेष और वैर की भावनाएँ बढ़ने लगी। इस बैर भावना के कारण त्याग को अमल में लाने की बातें तो छूटने लगी और सब लोग ऐसे समय की राह देखने लगे कि जब वे प्रत्यक्ष विवाद करके जाहिर रूप से अलग हो जॉय ।
वीर निर्वाण की दूसरी शताब्दो भारतवर्ष के लिए बड़ी ही भयंकर थी। इसमें वारह वर्ष के बड़े ही भीषण दुष्काल पड़े। इनका वर्णन हम पहले कर आये हैं। इन दुष्कालों के मिटने पर देश में कुछ शान्ति हुई और कुछ न हुई कि पाँचवी और छठवीं शताब्दी में फिर उतने ही भयङ्कर अकाल पड़े । इन अकालों के पश्चात् जब मथुरा में सभा हुई और उस
सभा में जब निर्ग्रन्थों के वस्त्र पहनने या न पहनने का प्रश्न Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com