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भगवान् महावीर
(६) मुझे इसमें किसी प्रकार का उज्र नहीं है कि जैन दर्शन वेदान्तादि दर्शनों से पूर्व का है।
भारत भूमि के तिलक, पुरुष शिरोमणी इतिहासज्ञ, माननीय पं० बाल गङ्गाधर तिलक के ३० नवम्बर सन् १९०४ को बड़ोदा नगर में दिये हुए व्याख्यान से उद्धृत कुछ वाक्य ।
(१) श्रीमान् महाराज गायकवाड़ (बड़ोदा नरेश ) ने पहले दिन कॉन्फ्रेस में जिस प्रकार कहा था उसी प्रकार 'अहिंसा परमोधर्म' इस उदार सिद्धान्त ने ब्राह्मण धर्म पर चिरस्मरणीय छाप मारी है। पूर्वकाल में यज्ञ के लिये असंख्य पशु हिंसा होती थी इसके प्रमाण मेघदूत काव्य आदि अनेक ग्रन्थों से मिलते हैं...इस घोर हिंसा का ब्राह्मण धर्म से बिदाई लेजाने का श्रेय ( पुण्य ) जैन धर्म के हिस्से में है।
(२) ब्राह्मण धर्म को जैन धर्म ही ने अहिंसा धर्म बनाया।
(३) ब्राह्मण व हिन्दू धम में जैन धर्म के ही प्रताप से मांस भक्षण व मदिरापान वन्द हो गया।
(४) ब्राह्मण धर्म पर जो जैन धर्म ने अक्षुण्ण छाप मारी है उसका यश जैन धर्म ही के योग्य है। जैन धर्म में अहिंसा का सिद्धान्त प्रारम्भ से है, और इस तत्व को समझने की त्रुटि के कारण बौद्ध धर्म अपने अनुयायी चीनियों के रूप में सर्व भक्षी हो गया है।
(५) पूर्व काल में अनेक ब्राह्मण जैन पण्डित जैन धर्म के धुरन्धर विद्वान हो गये हैं। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com