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भगवान् महावीर
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म्बरत्व और दिगम्बरत्व का बीज बोया गया और जम्बूस्वामी के निर्वाण के पश्चात् ही इस बीज का सिंचन होने लगा। इस बात का समर्थन वर्तमान सूत्र ग्रन्थों से भी होता है जैसे
"मण-परमोहि-पुलाए आहारग-खवग उसमे कप्ये ।
संजमतिय-केवलि-सिझणा य जम्बुम्मि बुच्छिएण ॥" जम्बूस्वामी के निर्वाण पश्चात् निम्नलिखित दश बातों का उच्छेद हो गया, मनः पर्यय ज्ञान, परमावधि, पुलाकलब्धि, आहारकशरीर, आपकश्रेणी, जिनकल्प, संयमत्तिक, केवलज्ञान और सिद्धि गमन, इससे यह तो स्पष्ट मालूम होता है कि जम्बूस्वामी के पश्चात् जिनकल्प का नाश बतला कर लोगों को इस ओर मे अनुत्साहित करने का प्रयत्न इस गाथा में किया गया है, पर यह पाठ कबका है और किसका बनाया हुआ है यह नहीं कहा जा सकता । लेकिन इसमें सन्देह नहीं कि यह पाठ मथुरा की सभा के पहले से ही परम्परा से चला आया है और इसी कारण देवर्धिगण ने भी इसे अपने सूत्र में स्थान दिया है।
उपरोक्त गाथा में जिनकल्प का आचार करनेवाले को जिनाज्ञा-बाहर समझने की जो इकतर्फी आज्ञा दी गई है इससे मालूम होता है कि मतभेद रूपी विषवृक्ष के पैदा होने का यही समय है। मज्झिमनिकाय नामक एक बौद्ध ग्रन्थ में भी इस मत भेद का उल्लेख किया गया है
एवं मे सुतं-एक समयं भगवा सक्कसु विहरति सामगामे तने खोपन समयेन निगण्ठो नातपुत्तो.........होति.....तस्स मिना निगण्ठा देधिक जाता, भण्डनजाता, कलहजाता विवादापमा अचमचं मुखसत्ती ही वितुदंता विहरन्ति ।
. . पृष्ठ २४३-२४६, Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com