Book Title: Bhagwan Mahavir
Author(s): Chandraraj Bhandari
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 439
________________ ४३३ भगवान् नहावार ___जो लोग समाज-शास्त्र के ज्ञाता हैं वे उन तत्वों को भली प्रकार जानते हैं, जिनके कारण जातियों और धर्मों का पतन होता है। किसी भी धर्म अथवा जाति के पतन का प्रारम्भ उसी दिन से प्रारम्भ होता है जिस दिन किसी न किसी छिद्र से उसके अन्तर्गत स्वार्थ का कीड़ा घुस जाता है-जिस दिन से लोगों को मनोवृत्तियों के अन्दर विकार उत्पन्न हो जाता है-जिस दिन से लोग व्यक्तिगत स्वार्थों के फेर में पड़ कर अपने जीवन की नैति. कता को नष्ट करना प्रारम्भ कर देते हैं । युद्ध, महामारी, दुर्भिक्ष आदि बाहय आपत्तियों से भी धर्म और जाति का अधःपात होता है, विधर्मियों का प्रतिकार और विदेशियों के आक्रमण भो उसके विकास में बाधा अवश्य देते हैं पर उन उपद्रवों से किसी भी धर्म अथवा जाति के मूलतत्वों में बाधा नहीं आ सकती और जब तक उसके मूलतत्वों में बाधा नहीं आती तब तक उसका वास्तविक अनिष्ट भी न हो सकता । जाति अथवा धर्म का वास्तविक अनिष्ट तभी हो सकता है जब उसके मूल आधारभूत तत्वों में किसी प्रकार की क्रान्ति किसी प्रकार की विशृङ्खला उत्पन्न होती है। जब उसके अनुयायियों के दिल और दिमाग में किसी प्रकार का विकार उत्पन्न हो जाता है। धर्म की सृष्टि ही इसलिए हुई है कि वह मनुष्य-प्रकृति के कारण उत्पन्न हुई अकल्याण कर भावनाओं से मनुष्य जाति की रक्षा करे। मनुष्य की स्वाभाविक दुष्प्रवृति के कारण समाज में जो अनर्थ कारक घटनाएँ हुआ करती हैं उनसे व्यक्ति और समष्टि को सावधान करे और मनुष्य जाति को दुष्प्रवृत्तियों के २८ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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