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भगवान् महावीर
३८२ मनुष्य को मनुष्यता इसी में है कि वह अपनी लागणियों को अपने जज्बों को दया से दबा रक्खे । जगत का कल्याण उन्हीं लोगों से होता है जो उदार हृदय वाले होते हैं। जिस काल में दयाहीन स्वार्थी लोगों का दौरदौरा होता है उस काल में प्रजा को जो दुःख उठाने पड़ते हैं वे इतिहास के वेत्ताओं से छिपे नहीं हैं। - इसलिए जैन शास्त्रों में गृहस्थ धर्म का वर्णन करते हुए
कहा है कि:-गृहस्थ को जान बूझ कर संकल्प पूर्वक किसी त्रस्त जीव को न मारना चाहिये-न सताना चाहिये। बिना किसी प्रयोजन के किसी भी आत्मा को खेद पहुँचे इस प्रकार के दुर्वचन न कहना चाहिये। ___ स्थूल मृषावाद विरमण-जो सूक्ष्म असत्य से बचने का व्रत नहीं निभा सकते हैं उनके लिए स्थूल (मोटे) असत्यों का त्याग करना बताया गया है। इसमें कहा गया है कि, कन्या के सम्बन्ध में, पशुओं के सम्बन्ध में, खेत कुओं के सम्बन्ध में और इसी तरह को और बातों के सम्बन्ध में झूठ नहीं बोलना चाहिये। यह भी आदेश किया गया है कि दूसरों की धरोहर नहीं पचा जाना चाहिये, झूठी गवाही नहीं देनी चाहिये, और जाली लेख-दस्तावेज नहीं बनाने चाहिये।
स्थूल अदत्ता दान विरमण-जो सूक्ष्म चोरी को त्यागने . का नियम नहीं पाल सकते उनके लिये स्थूल चोरी छोड़ने का
नियम बताया गया है। स्थूल चोरी में इन बातों का समावेश : होता है:
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