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भगवान् महावीर
३८८ कूर्म पुराण में भी लिखा है कि:--
“न द्रुह्येत् सर्व भूतानि निर्द्वन्द्वो निर्भयो भवेत् । 'न मक्तं चैवम श्रीयाद् रात्रौ ध्यान परो भवेत् ॥"
(२७ वां अध्याय ६४५ वां पृष्ठ) भावार्थ-मनुष्य सब प्राणियों पर द्रोह रहित रहे, निर्द्वन्द्व और निर्भय रहे तथा रात को भोजन न करे और ध्यान में तत्पर रहे । और भी ६५३ वें पृष्टपर लिखा है कि:- .
"आदित्ये दर्शयित्वान्नं भुञ्जीत प्राङमुखे नरः।". भावार्थ-सूर्य हो उस समय तक दिन में गुरु या बड़े को दिखा, पूर्व दिशा में मुख करके भोजन करना चाहिये। ___ अन्य पुराणों और अन्य ग्रन्थों में भी रात्रि भोजन का निषेध करनेवाले अनेक वाक्य मिलते हैं-महाभारत में युधिष्ठिर को सम्बोधन करके यहां तक कहा गया है कि किसी को भी चाहे वह गृहस्थ हो या साधु, रात्रि में जल तक नहीं पीना चाहिये जैसे:
"नोदकमपि पातव्यं रात्रावत्र युधिष्ठिर !
तपस्विनां विशेषेण गृहीणां च विवेकिनाम॥" भावार्थ-तपस्वियों को मुख्यतया रात में पानी नहीं पीना' चाहिये और विवेकी गृहस्थों को भी इसका त्याग करना चाहिये, और भी कहा है कि:
"दिवसस्याष्टमे भागे मन्दीभूते दिवाकरे । एतद् नक्तं विजयानीयाद् न नक्तं निशि भोजनम् ॥ मुहूर्त्तानं दिमं नक्तं प्रवदन्ति मनीषिणः ।
नक्षत्र दर्शनानक्तं नाहं मन्ये गणाधिप ॥" Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com