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भगवान् महावीर
सन्ध्यायां यक्षरक्षोभिः सदा भुक्तं कुलोद्वह ।
सर्ववेलामति क्रम्य रात्रौ भुक्तम भोजनम् ॥" इन दो श्लोकों में युधिष्ठिर से कहा गया है कि हे युधिष्ठिर ! दिन के पूर्व भाग में देवता, मध्याह्न काल में ऋषि, तीसरे पहर में पितृगण, सायंकाल में दैत्य-दानव और सन्ध्या समय में यक्ष-राक्षस भोजन करते हैं । इन समयों को छोड़ कर जो भोजन किया जाता है वह भोजन दुष्ट भोजन हो जाता है।
गत में छः कार्य करना मना किया गया है उनमें रात्रिभोजन भी है। यह भी रात्रि-भोजन निषेध के कथन को पुष्ट करता है। जैसे :
"नैवाहुतिन च स्नानं न श्राद्धं देवतार्चनम् ।
दानं वा विहितं रात्रो भौजनं तु विशेषतः ॥" भावार्थ-आहुति, स्नान, श्राद्ध, देव पूजन, दान और खास करके भोजन रात में नहीं करना चाहिये । इस विषय में आयुर्वेद का मुद्रालेख भी यही है कि :- .
"हनाभि पद्म संकोचश्वण्डरोचिरपायतः । ____अतो नक्तंन भोक्तव्यं सूक्ष्म जीवादनादपि ॥” भावार्थ-सूर्य छिपजाने के बाद हृदय कमल और नामि कमल दोनों संकुचित हो जाते हैं, और सूक्ष्म जीवों का भी भोजन के साथ भक्षण हो जाता है, इसलिए रात में भोजन न करना चाहिये।
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