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भगवान् महावीर
इस प्रकार श्वेताम्बरों के प्रामाणिक प्रन्थों में कहीं भी ऐसा नहीं पाया जाता जहाँ पर वस्त्र और पात्र के लिए विशेष आग्रह किया गया हो या जहाँ पर यह कहा गया हो कि इनके बिना मुक्ति ही नहीं, इनके बिना संयम ही नहीं, अथवा इनके सिवा कल्याण ही नहीं। उनमें तो साफ २ बतलाया गया है कि जो साधु वस्त्र और पात्र रहित रहकर भी निर्दोष संयम पालन कर सकताहो उसके लिए वस्त्र और पात्र की कोई आवश्यकता नहीं। हाँ, जो इनके बिना संयम का पालन न कर सकता हो वह यदि वस्त्र पात्र को रक्खे तो कोई बाधा नहीं। दोनों का ध्येय संयम है, दोनों का उद्देश्य त्याग है और दोनों का मंजिले मकसूद मोक्ष है । वस्त्रपात्र रखनेवाले को वस्त्रपात्र का गुलाम बन कर न रहना चाहिए और इसी प्रकार नग्न रहनेवाले को भी नग्नता का दासत्व न करना चाहिए। किसी भी प्रकार का एकान्त दुराग्रह न करते हुए आवश्यकताओं को कम करने का प्रयत्न करते रहना चाहिए । इसी प्रकार के मार्ग का भगवान् ने उपदेश दिया है
और यही आर्ष ग्रन्थों में अंकित है। ____ हम समझते हैं कि यहाँ तक दिगम्बर ग्रन्थों को विशेष आक्षेप करने का अवकाश न मिलेगा। इसमें सन्देह नहीं कि उनमें बीमार पड़ने पर भी अथवा मृत्यु के मुख में पहुँचने तक भी साधु को वस्त्र, पात्र, धारण करने की आज्ञा नहीं है । संयम के उग्र-पोषक दिगम्बर ग्रन्थ खाने पीने की रियायत की तरह वख और पात्र की भी कुछ रियायत रखते तो ठीक था । अभ्यासी और उम्मेदवार मनुष्यों को एकदम इतने कठिन व्रत का पालन करना बहुत ही मुश्किल बल्कि असम्भव होता Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com