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भगवान् महावीर
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'पात करने पर हमें मालूम होता है कि सेमेटिक लोगों का धर्म 'पहले एशिया के पूर्जेत्तरीय विभाग में प्रस्तारित हुआ, और उसके पश्चात् इजिप्ट और यूरोप के दक्षिणी भाग में उसने अपने पैर गाड़े।
बैविलोनिया से उसका जीवन समाप्त होने के पश्चात् उसके धार्मिक विकास का नया केन्द्र पैलेस्टाइन में निर्मित हुआ । इस नूतन केन्द्र-स्थल में दो प्रकार के धर्म विचारों का जन्म हुआ, एक यहूदी और दूसरा ख्रिस्ती । ये दोनों धर्म क्रमशः पश्चिम की ओर गति करने लगे, और कुछ ही समय पश्चात् प्राचीन सेमेटिक धर्म की तरह इन्होंने भी सारे यूरोप पर अपना अधिकार जमा लिया। इन धर्मों का प्रचार होने से पूर्व यूरोप में भिन्न भिन्न जातियों में जातित्व धर्म की भावनाएं, भिन्न भिन्न मानी जाती थीं और उनका स्वरूप बड़ा ही उलझन पूर्ण हो रहा था, खोस्ती धर्म से पहले यहूदी धर्म का रोम तक प्रचार हो गया था। जिसके प्रायः फल स्वरूप सेन्टपाल के अनुयायियों की महत्वाकांक्षा के अनुकूल भूमिका तैयार हो गई थी, सेण्ट'पाल ने अपने गुरु क्राईस्ट के उच्च ध्येय को कुछ पीछे की ओर खींच कर ईसाई धर्म को जगत् का बलवान और सत्ता धारी धर्म बनाने का प्रयत्न किया। उसके इस प्रबल प्रयत्न का तुरन्त तो कोई नतीजा न मिला पर उसके परिणाम स्वरूप कुछ शता'ब्दियों पश्चात ख्रिस्ती धर्म को वह स्थिति अवश्य प्राप्त हो गई। . यह तो सेमेटिक मनुष्य जाति का संक्षिप्त इतिहास हुआ, अब दूसरी आर्य जाति के विषय में हम विचार करने बैठते हैं। यद्यपि हमें उसकी मूलोत्पत्ति के विषय में कोई निश्चित अनु Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com