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सातवां अध्याय +--
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गृहस्थ के धर्म
वार्यों ने अपने शास्त्रों में गृहस्थ-धर्म और साधु. धर्म पर बहुत विस्तृत विवेचन किया है । दिगम्बर
साहित्य में तो "रत्नकरण्ड श्रावकाचार" के समाना पुस्तकें इस विषय पर मौजूद हैं । गृहस्थ-धर्म का दूसरा नाम श्रावक-धर्म भी है । इस धर्म का पालन करनेवाले पुरुष "श्रावक"
और स्त्रियाँ "श्राविकाएँ" कहलाती हैं। गृहस्थ-धर्म पालने में बारह व्रत बतलाये गये हैं।
१-स्थूल प्राणातिपात विरमण, २-स्थूल मृषावाद विरमण, ३-स्थूल अदत्तादान विरमण, ४--स्थूल मैथुन विरमण, ५-परिग्रह परिणाम, ६-दिग्बत, ७-भोगोपभोग परिमाण, ८-अनर्थ दण्ड विरति, ५-सामायिक, १०-देशावकाशिक, ११-प्रोषध और १२-अतिथि संविभाग।
१-स्थून प्राणातिपात विरमण-(अहिंसा ) इस व्रत का विस्तृत वर्णन हम इस खण्ड के पहले अध्याय में कर आये हैं। उस लेख में हम यह बतला चुके हैं कि गृहस्थ स्थूल हिंसा का त्यागी नहीं होता। संसारिक व्यवहार चलाने के लिये अथवा
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