________________
३.७७
भगवान महावीर
कमा कर खाता है। उसके पश्चात् "भोग भूमि" का प्रादुर्भाव हो जाता है। इसमें मनुष्य को अपनी ताकत से कुछ भी कार्य नहीं करना पड़ता, उसे सब अभीष्ट वस्तुएं कल्पवृक्षों से प्राप्त होती हैं । भोग भूमि प्रारम्भ हुए के पश्चात् तीर्थकर, चक्रवर्ती
आदि महापुरुषों का पैदा होना बन्द हो जाता है। क्योंकि महापुरुष तो अपनी निजी 'शक्ति से कर्म करके महापुरुष होते हैं और उस समय मनुष्य को कर्म करने के लिए कुछ भी नहीं रह जाता, सब काम कल्पवृक्षों से होते रहते हैं। इधर नरक के द्वार बन्द हो जाते हैं, उधर मोक्ष भी अप्राप्य हो जाता है । सिवाय स्वर्ग के कोई गति नहीं रह जाती। चारों ओर भोग ही भोग के दृश्य नज़र आने लगते हैं। लड़ाई, दङ्गे, पाप आदि सब बन्द हो जाते हैं । मनुष्य की शक्ति, आयु और शरीर की ऊँचाई इतनी बढ़ जाती है, कि जिसका कोई हिसाब नहीं। इसके खतम हुए पश्चात् पाँचवे "सुखमा" काल का पादुर्भाव होता है । इसमें भोगों की तादाद और भी बढ़ती है । उसके पश्चात् छठे सुखमा-. . सुखमा काल का आविर्भाव होता है। इसके अन्दर मनुष्य की
आयु, काया, और शक्ति की हद्द हो जाती है। इसके अन्त में मनुष्य के भौतिक विकास की पूर्णता हो जाती है । ___इसके समाप्त हुए पश्चात् फिर इसी "सुखमा-सुखमा" काल का प्रादुर्भाव होता है। पर यह काल अवसर्पिणी का पहला काल होता है । इसमें मनुष्य को वही स्थिति रहती है जो उत्स. पिणी काल के छठे आरे में रहती है, अन्तर केवल इतना ही होता है कि जहाँ उत्सर्पिणी काल के छठवें आरे में मनुष्य की
शक्ति, आयु और बल बढ़ते रहते हैं वहाँ उसमें घटना प्रारम्भ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com