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छठा अध्याय
जैन-शास्त्रों में भौतिक विकास
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प्राध्यात्मिक विकास ही की तरह जैन-शास्त्रों में भौतिक
विकास का भी बड़ी ही सुन्दरता के साथ वर्णन
किया गया है। समय के अनुसार मनुष्य का किस प्रकार विकास और ह्रास होता है इसका बड़ा ही क्रमबद्ध विवेचन पाया जाता है।
जैन धर्म के अन्तर्गत काल के दो विभाग किये गये हैं १. उत्सर्पिणी काल और २. अवसर्पिणी काल । उत्सर्पिणी के अन्तर्गत मनुष्य का शरीर, शक्ति, बल, और आयु आदि क्रम से अपना विकास करते रहते हैं और अवसर्पिणी काल में इनका क्रम गत ह्रास होता रहता है । उस क्रम विकास को और स्पष्ट करने के लिए जैनाचार्यों ने इन दोनों विभागों के छः छः विभाग और कर दिये हैं जो निम्न प्रकार हैं । उत्सर्पिणी काल
अवसर्पिणी काल १. दुखमा दुखमा
१.सुखमा सुखमा २. दुखमा
२. सुखमा . ३. दुखमा सुखमा
३.सुखमा दुखमा
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