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भगवान् महावार
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यदि कोई गमन करता चला जाय तो आकाश का अन्त कभी नहीं होता है, अन्यथा वह सर्वव्यापी नहीं हो सकता था । इसी प्रकार जीवराशि का अन्त नहीं होगा। ____इस तरह मोक्ष में अनन्त शुद्ध जीव अनन्त ज्ञान, अनन्त दर्शन, अनन्त वीर्य और अनन्त सुखवाले अनन्त परमात्मरूप अपनी अपनी सत्ता में सच्चिदानन्द स्वरूप होकर हमेशा परमानन्द में रहते हैं। आत्म-कल्याण के चाहनेवाले जीव ऐसे परमोत्कृष्ट वीतराग सर्वज्ञ परमात्मा को अपना आदर्श बनाकर उसकी पूजा-स्तुति करके शुभ-कर्म उपार्जन करते हैं, शुद्धोपयोग में प्रवृत्त रहते हैं और क्रम से विशुद्ध प्रयत्न करते हुए एक दिन स्वयं परमात्म-पद को प्राप्त कर लेते हैं । ... जैन-धर्म के मोक्ष का यही सच्चा स्वरूप है। इसीका
सर्वज्ञों ने उपदेश किया है और यह न्याय से सिद्ध है। यह 'आत्मधर्म किसी एक समाज या जाति की पैत्रिक सम्पत्ति नहीं है, बल्कि सब जीवों का हितकारी है।
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