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भगवान् महावीर
'योगवाला' होता है। योग का अर्थ है शरीरादि का व्यापार, केवल ज्ञान होने के बाद भी शरीरधारी के गमनागमन का व्यापार, बोलने का व्यापार आदि व्यापार होते हैं-इसलिये वे शरीर धारी केवली 'सयोग' कहलाते हैं। ___ उन केवली परमात्माओं के, आयुष्य के अन्त में, प्रबल शुक्लध्यान के प्रभाव से, जब सारे व्यापार रुक जाते हैं, तब उनको जो अवस्था प्राप्त होती है उसका नाम:
अयोग केवली गुणस्थान है । अयोगी का अर्थ है सर्व व्यापार रहित-सर्व क्रिया रहित ।
ऊपर यह विचार किया जा चुका है, कि आत्मा गुण श्रेणियों • में आगे बढ़ता हुआ, केवल ज्ञान प्राप्त कर, आयुष्य के अन्त में
अयोगी बन तत्काल ही मुक्ति प्राप्त कर लेता है। यह प्राध्यात्मिक विषय है-इसलिए यहाँ थोड़ी सी आध्यात्मिक बातों का दिग्दर्शन कराना उचित होगा।
अध्यात्म संसार की गति गहन है, जगत् में सुखी जीवों की अपेक्षा दुखी जीवों का क्षेत्र बहुत बड़ा है। लोक आधिव्याधि और शोक संताप से परिपूर्ण हैं। हजारों तरह के सुख साधनों की उपस्थिति में भी सांसारिक वासनाओं में दुख की सत्ता भिन्न नहीं होती। आरोग्य लक्ष्मी सुवनिता और सत्पुत्रादि के मिलने पर भी दुःख का संयोग कम नहीं होता। इससे यह समझ में
आ जाता है कि दुःख से सुख को भिन्न करना-केवल सुख भोगी : बनना बहुत ही दुःसाध्य है। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com