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पाँचवाँ अध्याय ।
जैन धर्म में आत्मा का आध्यात्मिक विकास
. संसार के प्रायः सभी धर्मों ने मोक्ष को आत्मा के विकास
की सर्वोच्च स्थिति माना है, लेकिन मोक्ष तक पहुँचने के पर्व उसका किस प्रकार क्रम विकास होता है इस पर भिन्न भिन्न दर्शनकारों के भिन्न भिन्न मत हैं। नीचे हम तुलनात्मक दृष्टि से आत्मा के इस क्रम विकास पर कुछ विचार करना चाहते हैं।
वैदिक दर्शन महर्षि पातञ्जलि ने योग दर्शन में मोक्ष की साधना के लिए योग का वर्णन किया है। योग को हम आध्यात्मिक विकास क्रम की भूमिका कह सकते हैं । इस योग के प्रारम्भ काल की भूमिका से लेकर क्रमशः पुष्ट होते होते उसको उच्चाति उच्च अवस्था की भूमिका तक पहुँचने की सीढ़ियों को आध्यात्मिक विकास क्रम कह सकते हैं। योग के प्रारम्भ से पूर्व की भूमिकाएँ आत्मा के अविकास की भूमिकाएँ हैं । सूत्रकार के इस विषय को और भी स्पष्ट करने के लिए भाष्यकार महर्षि व्यास ने उन भूमिकाओं को पांच भागों में विभक्त कर दिया है।
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