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भगवान् महावीर का प्राबल्य रहने से वे विकास काल की गिनी जाती हैं
ज्ञान की सातवी भूमिका में विकास अपनी पूर्ण कला को पहुँच जाता है । इसके बाद की स्थिति को मोक्ष कहते हैं ।
बौद्ध-दर्शन । बौद्ध साहित्य के मौलिक ग्रन्थों को “पिटक” कहते हैं। पिटक में कई स्थानों पर अध्यात्मिक विकास का व्यवस्थित और स्पष्ट वर्णन किया है । उसके अन्दर आत्मा को छः स्थितियें बतलाई गई हैं। १. अंधपुथ्थुजन २ कल्याण पुथ्थुज्जन ३. सोतापन्न ४. सकदागामी' ५. ओपपत्ति क' ६. अरहा"
१. "पुथ्थुजन" सामान्य मनुष्य को कहते हैं। इसके “अंध पुथ्थुजन" और "कल्याण पुथ्थुजन' नामक दो विभाग किये हैं । यथा
दुवे पुथ्थुजना बुद्धेना दिच्च बन्धुना,
अंधो पुथ्थुजनो ए वो कल्याणे को पुथ्थुजनो । (२) इन दोनों में संयोजना (बंधन) तो दश ही प्रकार की होती है, अंतर केवल इतना ही रहता है कि, जहाँ पहले की वह प्राप्त रहती है। वहां दूसरे को अप्राप्त रहती है। ये दोनों मोक्षमार्ग से पराङ्मुख होते हैं।
२. मोक्षमार्ग को ओर अग्रसर होनेवालों के चार भेद हैं जिन्होंने तीन संयोजना का नाश कर दिया है । वे “सोतापन्न" कहलाते हैं। सोतापन्न अधिक से अधिक इस मनुष्य लोक में सात वार जन्म ग्रहण करते हैं, उसके बाद अवश्य निर्वाण को प्राप्त होते हैं।
३. जिन्होंने तीन संयोजना का तो नाश कर दिया हो और दो को शिथिल कर डाला हो वे "सकदागामी" कहलाते हैं। "सकदागामो" केवल एक ही बार मनुष्य लोक में और अते हैं । उसके पश्चात् वे निर्वाण प्राप्त कर लेते हैं। .. Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com