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भगवान महावीर
सासादन, मिश्र, अविरतसम्यकदृष्टि, देशविरति, प्रमत्त, अप्रमत्त; अपूर्वकरण, अनिवृति, सूक्ष्मसंपराय, उपशान्त मोह, क्षीण मोह, सयोग केवली और अयोग केवली ।
मिथ्या दृष्टि गुणस्थान-इस बात को सब जोग समझते हैं कि प्रारम्भ में सब जीव अधोगति ही में होते हैं इसलिए जो जीव प्रथम श्रेणी में होते हैं वे मिथ्यादृष्टि में होते हैं। मिथ्या दृष्टि का अर्थ है-वस्तुतत्वं के यथार्थ ज्ञान का अभाव । इसी प्रथम श्रेणी से जीव आगे बढ़ते हैं । यहाँ यह प्रश्न हो सकता है कि इस दोष-युक्त प्रथम श्रेणी में भी ऐसा कौन सा गुण है जिससे इसकी गिनती भी गुण-श्रेणी में की गई है इसका समाधान यह है कि सूक्ष्मातिसूक्ष्म और नीची हद के जीवों में भी चेतना की कुछ मात्रा तो अवश्यमेव उज्ज्वल रहती है। इसी उज्वलता के कारण मिथ्या दृष्टि की गणना भी 'गुण-श्रेणी में की गई है।
सासादन-सम्यकदर्शन से गिरती हुई दशा का यह नाम है। सम्यकदर्शन प्राप्त होने के बाद क्रोधादि अति तीव्र कषायों का उदय होने से जीव के गिरने का समय आता है यह गुणस्थान पतनावस्था का है मगर इसके पहले जीव को सम्यग्दर्शन हो गया होता है, इसलिए यह भी निश्चित हो जाता है कि वह कितने समय तक संसार में भ्रमण करेगा।
मिश्र गुणस्थान की अवस्था में आत्मा के भाव बड़े ही विचित्र होते हैं इस गुणस्थानवाला सत्य मार्ग और असत्य
* 'असादन' का अर्थ है अतितोत्र क्रोधादि कषाय । जो इन कषायों से युक्त होता है उसी को 'सासादन' कहते हैं । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com