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भगवान् महावीर
इस प्रकार भिन्न भिन्न अपेक्षाओं से वस्तु को "सत्" और "असत्" कहने में विचारशील विद्वानों को कोई बाधा उपस्थित नहीं हो सकती । एक कुम्हार है, वह यदि कहे कि "मैं सुनार नहीं हूँ" तो इस बात में वह कुछ भी अनुचित नहीं कह रहा है।' मनुष्य की दृष्टि से यद्यपि वह "सत्" है तथापि सुनार की दृष्टि से वह "असत्" है। इस प्रकार अनुसन्धान करने से एक ही व्यक्ति में “सत्" और "असत्" का स्याद्वाद बराबर सिद्ध हो जाता है । किसी वस्तु को "असत्" कहने से यह मतलब नहीं है कि हम उसके “सत्" धर्म के विरुद्ध कुछ बोल रहे हैं। प्रत्युत हम तो दूसरी अंपेक्षा से उसका वर्णन कर रहे हैं। इसी बात को Dialogues of Plato में प्लेटो इस प्रकार लिखते हैं
When we speak of not being we speak, I suppose uot of something opposed to being but only different.
जगत के सब पदार्थ उत्पत्ति, स्थिति और विनाश इन तीन धर्मों से युक्त हैं। उदाहरण के लिये एक लोहे की तलवार ले लीजिए। उसको गला कर उसकी "कटारी" बना ली। इससे यह तो स्पष्ट हो गया कि तलवार का विनाश होकर कटारी की उत्पत्ति हो गई। लेकिन इससे यह नहीं कहा जा सकता कि तलवार बिल्कुल ही नष्ट हो गई अथवा . कटारी बिल्कुल नई बन गई। क्योंकि तलवार और कटारी का जो मूल तत्व है वह तो अपनी उसी स्थिति में मौजूद है। विनाश और उत्पत्ति तो केवल आकार की हुई । इस उदाहरण से-तलवार को तोड़ कर कटारी बनाने में तलवार के आकार का नाश, कटारी के आकार: की. उत्पत्ति और लोहे की स्थिति ये तीनों बातें भली भांति सिद्ध
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