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भगवान् महावीर
दो वाक्य जो अर्थ बताते हैं, वही अर्थ तीसरा वचन-प्रकार क्रमशः बताता है। और उसी अर्थ को चौथा वाक्य युगपत् एक साथ बताता है। इस चौथे वाक्य पर विचार करने से यह समझ में आ सकता है कि घट किसी अपेक्षा से अवक्तव्य भी है । अर्थात् किसी अपेक्षा से घट में "अवक्तव्य" धर्म भी है। परन्तु घट को कभी एकान्त अवक्तव्य नहीं मानना चाहिये । यदि ऐसा मानेंगे तो घट जो अमुक अपेक्षा से अनित्य और अमुक अपेक्षा से नित्यरूप से अनुभव में आता है। उसमें बाधा आ जायगी। अतएव ऊपर के चारों वचन प्रयोगों को "स्यात्" शब्द से युक्त, अर्थात् कथंचित्-अमुक अपेक्षा से, समझना चाहिये ।
इन चार वचन प्रकारों से अन्य तीन वचन प्रयोग भी उत्पन्न किये जा सकते हैं। ___ पाचवाँ वचन प्रकार-"अमुक अपेक्षा से घट नित्य, होने के साथ ही अवक्तव्य भी है।
छठा वचन प्रकार-"अमुक अपेक्षा से घट अनित्य होने के साथ ही अवक्तव्य भी है।"
सातवाँ वचन प्रकार-"अमुक अपेक्षा से घट नित्यानित्यः होने के साथ ही अवक्तव्य भी है।"
सामान्यतया, घटका तीन तरह से-नित्य, अनित्य और अवक्तव्य रूप से विचार किया जा चुका है। इन तीन वचन प्रकारों को उक्त चार वचन-प्रकारों के साथ मिला देने से सात वचन प्रकार होते हैं । इन सात वचन प्रकारों को जैन शास्त्रों में "सप्तभंगी" कहते हैं। 'सप्त' यानी सात, और 'भंग' यानी वचन Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com