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भगवान महावीर
३३८ प्रकारान्तर से नय के सात भेद बताये गये हैं । नैगम, संग्रह, व्यवहार ऋजुसूत्र, शब्द, समभिरूढ़ और एवम्भूत, नैगम-'निगम' का अर्थ है संकल्प-कल्पना । इस कल्पना से जो वस्तु व्यवहार होती है वह नैगम नय कहलाता है । यह नय तीन प्रकार का होता है, भूत नैगम, भविष्य नैगम
और वर्तमान नैगम । जो वस्तु हो चुकी है उसको वर्तमान रूप में व्यवहार करना 'भूतनैगम' है । जैसे-"आज वही दिवाली का दिन है कि जिस दिन महावीरस्वामो मोक्ष में गये थे।" यह भूतकाल का वर्तमान में उपचार है, महावीर के निर्वाण का दिन आज ( आज दिवाली का दिन ) मान लिया जाता है । इस तरह भूतकाल के वर्तमान में उपचार के अनेक उदाहरण हैं । होनेवाली वस्तु को हुई कहना 'भविष्य नैगम' है । जैसे चावल पूरे पके न हों, पक जाने में थोड़ी ही देर रही हो, तो उस समय कहा जाता है कि चावल पक गये हैं।" ऐसा वाक्य व्यवहार प्रचलित है अथवा अर्हतदेव को मुक्त होने के पहले ही कहा जाता है कि मुक्त हो गये यह नैगम नय है। ईधन, पानी आदि चावल पकाने का सामान इकट्ठा करते हुए मनुष्य को कोई पूछे कि क्या करते हो ? वह उत्तर दे कि “मैं चावल पकाता हूँ।" यह उत्तर 'वर्तमान नैगम नय' है क्योंकि चावल पकाने की क्रिया यद्यपि वर्तमान में प्रारम्भ नहीं हुई है तो भी वह वर्तमान रूप में बताई गई है। . संग्रह-सामान्यतया वस्तुओं का समुच्चय करके कथन फरना संग्रह नय है। जैसे-“सारे शरीरों की आत्मा एक है।" इस कथन से वस्तुतः सब शरीर में एक आत्मा सिद्ध नहीं Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com