________________
३२५
भगवान् महावीर
wep. उसके "असत्" गुण का सूचक है। सौ घड़े हैं, सामान्य दृष्टि से वे सब घड़े हैं; इसलिये "सत्" हैं। मगर लोग उनमें से भिन्न भिन्न घड़ों को पहचान कर जब उठा लेते हैं तब यह मालूम होता है कि प्रत्येक घड़े में कुछ न कुछ विशेषता है या भिन्नता है। यह भिन्नता ही उनका विशेष गुण है । जब कोई मनुष्य अकस्मात् दूसरे घड़े को उठा लेता है और यह कह कर कि "यह मेरा नहीं है" वापस रख देता है। उस समय उस घड़े का नास्तित्व प्रमाणित होता है । "मेरा" के आगे जो "नहीं"शब्द है वही नास्तित्व का सूचक है । यह घड़ा है इस सामान्य धर्म से घड़े का अस्तित्व साबित होता है। मगर "यह घड़ा मेरा नहीं है" इस विशेष धर्म से उसका नास्तित्व भी साबित होता है । अतः सामान्य और विशेष धर्म के अनु. सार प्रत्येक वस्तु को “सत्" और "असत्" समझना ही स्याद्वाद के है।
शंकराचार्य का आक्षेप
जगद्गुरु शङ्कराचार्य ने स्याद्वाद का विशेष पृथक्करण किये बिना ही इस तत्वज्ञान का खण्डन कर डाला है। खण्डन करते समय उन्होंने पूर्व पक्ष का पूर्ण विवेचन भी नहीं किया है । सप्तभङ्गो का-"स्यादस्ति" वर्णन करते समय उन्होंने "स्वर
• यह विषय बहुत हो गहन है । इसको विशेष जानकारी के लिये कुन्द. वु.न्दाचार्य का प्रवचन सार, समय सार आदि और हरिभद्र सूरि की अनेकान्त
जय पताका आदि पढ़ना चाहिये । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com