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भगवान महावीर
२५४ "साध्वी ! तुम झूठ मत बोलो । तुम्हारे मत के अनुसार जब सारा वस्त्र जल कर राख हो जाय तभो उसे “जला" ऐसा कह सकते हैं । जलते हुए को जल गया कहना यह तो श्री अर्हन्त का वचन है ।" यह सुनते ही प्रियदर्शना को शुद्ध बुद्धि उत्पन्न हुई। उसी समय वह बोली "ढङ्क ! तेरा कहना यथार्थ है। चिरकाल से मेरी बुद्धि नष्ट हो रही थी। तैने मुझे अच्छा बोध किया । अब मुझे अपने किये का पड़ा पश्चात्ताप है।" ढङ्क ने कहा-“साध्वी ! तुम्हारा हृदय शुद्ध और साफ है, तुम शीघ्र ही वीर प्रभु के पास जाकर इसका पश्चात्ताप कर लो।" यह सुन कर प्रियदर्शना जमालि का साथ छोड़ अपने परिवार सहित वीर प्रभु की शरण में आई। उसके साथ ही साथ जमालि के दूसरे शिष्य भी उसे छोड़ कर भगवान् की शरण में आ गये। केवल मिथ्यात्व से खदेड़ा हुआ, अकेला जमालि कई वर्षों तक पृथ्वी पर भ्रमण करता रहा । अन्त में एक बार पन्द्रह दिन का अनशन कर वह मृत्यु को प्राप्त हुआ।
उस समय गौतम प्रभु ने भगवान् से पूछा- "हे प्रभु ! जमालि कौन सी गति में गया ?" वीर प्रभु ने कहा-"गौतम ! तपोधन जमालि लातङ्क देवलोक में किग्विषिक देवता हुआ है। वहाँ से भयंकर पांच २ भव नरक, तिर्यंच, और मनुष्य गति में भ्रमण करके निर्वाण को प्राप्त होगा। जो लोग धर्माचार्य का विरोध करते हैं उनकी ऐसीही गति होती है।" इस प्रकार उपदेश देकर प्रभु ने वहाँ से अन्यत्र बिहार किया।
उस समय अवन्ति नगरी में परम पराक्रमी राजा चण्ड प्रद्योत राज्य करता था, वह सुन्दर स्त्रियों का बड़ा लोलुपी था । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com