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का दूसरा अध्याय
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MamPATTA
ऊचा ९२
स्याद्वाद-दर्शन CHAN
जी के प्रसिद्ध विद्वान् डाक्टर "थामस" का कथन है। कि "न्याय-शास्त्र में जैन-न्याय का स्थान बहुत
ऊँचा है इसके कितने ही तर्क पाश्चात्य तर्क-शास्त्र के नियमों से बिल्कुल मिलते हुए हैं। स्याद्वाद का सिद्धान्त बड़ा ही गम्भीर है। यह वस्तु की भिन्न भिन्न स्थितियों पर अच्छा प्रकाश डालता है।"
इटालियन विद्वान् डा० टेसीटोरी का कथन है कि जैनदर्शन के मुख्य तत्व विज्ञान-शास्त्र के आधार पर स्थित हैं। मेरा यह पूर्ण विश्वास है कि ज्यों ज्यों पदार्थ विज्ञान की उन्नति होती जायगी, त्यों त्यों जैन-धर्म के सिद्धान्त वैज्ञानिक प्रमाणित होते जायेंगे।
जैन-तत्व-ज्ञान की प्रधान नीव स्याद्वाद-दर्शन पर स्थित है। डाक्टर हर्मन जेकोबी का कथन है कि इसी स्याद्वाद के ही प्रताप से महावीर ने अपने प्रतिद्वन्दियों को परास्त करने में अपूर्व सफलता प्राप्त को थी। सञ्जय के "अज्ञेयवाद" के बिल्कुल प्रतिकूल इसकी रचना की गई थी। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com