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भगवान् महावीर
२९६ देश क्यों गुलाम होते हैं, जातियां क्यों नष्ट हो जाती हैं, साम्राज्य क्यों बिखर जाते हैं, इन घटनाओं के मूल कारण हिंसा और अहिंसा में ढूँढ़ने से नहीं मिल सकते । इनके कारण तो मनोविज्ञान और साम्राज्य के भीतरी रहस्यों में ढूँढ़ने से मिल सकते हैं। हम तो यहाँ तक कह सकते हैं कि मनोविज्ञान के उन तत्वों को–जिनके ऊपर देश और जाति की आजादी मुनहसर है-अहिंसा के भाव बहुत सहायता प्रदान करते हैं ।
मनस्तत्व के वेत्ता और समाजशास्त्र के पण्डित इस बात को भली प्रकार जानते हैं कि जब तक मनुष्य के जीवन में नैतिकता का विकास होता रहता है, जब तक समाज में दैवी सम्पद का आधिक्य रहता है, तब तक उस जाति का तथा समाज का कोई भी बाह्य अनिष्ट नहीं हो सकता । गरीबो और गुलामी उसके पास नहीं फटक सकती। जितनी भी जातियां अथवा देश गुलाम होते हैं वे सब नैतिक कमजोरी के कारण अथवा यों कहिए कि आसुरी सम्पद के आधिक्य के कारण होते हैं। दैवी सम्पद और नैतिक जीवन का मूल कारण सतोगुण का विकास होने से उत्पन्न होता है। सत्वशाली प्रजा का जीवन ही श्रेष्ठ और नैतिकता से युक्त हो सकता है। अहिंसा इसी सतोगुण की जननी है। जब तक मनुष्य के अंतर्गव यह तत्व जागृत रहता है, तब तक उसके अन्तर्गत सतोगुण का आधिक्य रहता है, और जब तक सतोगुण
का प्राधान्य रहता है तब तक उसका कोई अनिष्ट नहीं हो सकता। हिंसा की क्रूर भावनाओं से ही मनुष्य
की तामसिक वृत्ति का उदय होता है, जो कि व्यष्टि और Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com