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भगवान् महावीर
को शरण है । पर इस समय मेग पुत्र बिलकुल बलहीन बालक है, इससे यदि मैं इसके हाथ राज्य भार दे चलो जाऊँ तो निश्चय है कि आसपास के राजा इसका पराभव कर सारा राज्य हड़प जायँगे। यद्यपि आप के सम्मुख कोई राजा ऐसा साहस नहीं कर सकता, पर आप हमेशा तो यहां रहेंगे ही नहीं, रहेंगे सु दूरवर्ती उज्ययिनो नगरी में। ऐसी हालत में “सांप तो सिर पर और बूंटी पहाड़ पर" वाली कहावत चरितार्थ होगी, इसलिये यदि आप उजियिनी से इंटे मँगवा कर कौशाम्बी के चारों तरफ एक मजबूत किला बधवा दें तो फिर मुझे आपके साथ चलने में कोई आपत्ति न रह जाय।"
__ यह सुनते ही राजा चण्डप्रद्योत ने हर्षित चित्त से उसी समय किला बंधवाने की आज्ञा दे दी । भारी आयोजन के साथ किला बाँधना शुरू हो गया, कुछ दिन बीतने पर किला बिल्कुल तैयार हो गया, ।” उसके पश्चात् मृगावती ने दूसरा दूत भेज कर प्रद्योत से कहलाया-“राजन् ! अब तुम धन, धान्य, और इंधनादिक से नगरी को भरपूर कर दो, काम लोलुप चण्डप्रद्योत इतने पर भी मृगावती का मतलब न सममा और उसने बहुत शीघ्र उसकी आज्ञानुसार सब काम करवा दिया।
इतना सब हो जाने पर मृगावती ने चतुराई के साथ नगर के सब दरवाजों को बन्द करवा दिये । और किले पर अपनी सेना के बहादुर सुभटों को चुन कर चढ़ा दिये। अब तो चण्डप्रद्योत राजा शाखा भ्रष्ट बन्दर की तरह नगरी को घेर कर बैठ गया। वह हत बुद्धि हो मृगावती की बुद्धि पर आश्चर्य करने लगा।
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