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भगवान् महावीर
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कर दी थी। केवल वह सङ्गीत कला की शिक्षा अभी तक उसे न दे सका था । वह सङ्गीत कला में पारङ्गत एक अध्यापक की खोज में था। कुछ समय पश्चात् उसे पता लगा कि कौशाम्बीपति राजा "उदयन" सङ्गीत कला में अत्यन्त निपुण हैं। यह सुन उसने कई कौशलों से राजा उदयन को हरण कर मंगवा लिया और उसे कहा कि मेरे एक आँख वाली एक पुत्री है। उसे तुम सङ्गीत कला में निपुण कर दो। यदि तुम इस बात को स्वीकार करने में आनाकानी करोगे तो "मैं तुम्हें कठिन बन्धन में डाल दूंगा।" राजा उदयन ने भी उस समय की परिस्थिति को देख प्रद्योत का कथन स्वीकार किया । तब प्रद्योत ने उसे कहा-"मेरी कन्या एकाक्षी है इसलिए तुम उसकी ओर कभी मत देखना क्योंकि तुम्हारे देखने से वह अत्यन्त लजित होगी।" इस प्रकार उदयन को कह कर वह अन्तःपुर को गया। वहाँ जाकर उसने वासवदत्ता से कहा-"तरे लिये गन्धर्व-विद्या विशारद एक गुरु बुलवाया है वह तुझे सङ्गीतशास्त्र की शिक्षा देगा । पर वह कुष्टी है इसलिये तू कभी उसके सम्मुख न देखना ।" कन्या ने पिता की बात को स्वीकार किया। तत्पश्चात् वत्सराज उदयन ने उसको गन्धर्व विद्या की शिक्षा देना प्रारम्भ किया। प्रद्योत राजा के किये हुए कौशल से कुछ दिनों तक दोनों ने एक दूसरे की ओर न देखा । पर एक दिन वासवदत्ता के मन में उदयन को देखने की इच्छा हुई । जिससे वह जान बूझ कर हत बुद्धि सी हो गई। तब उदयन ने उसको डाट कर कहा-"अरी एकाक्षी ! पढ़ने में ध्यान न देकर तू क्यों गंधर्व विद्या का नाश करती है।" इस तिरस्कार से Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com