________________
२९३
भगवान् महावीर
• - के झगड़ों से मुक्त करने लिए तमाम मायावी सुखों को सामग्री को त्याग देने की आवश्यकता होती है । इसलिए जो लोग मुमुक्ष हैं, अपनी आत्मा का उद्धार करने के लिये इच्छुक हैं, उनको तो जैन अहिंसा कभी आत्मनाशक या अव्यवहार्य मालूम नहीं हो सकती । स्वार्थलोलुप और विलासी आदमियों को तो बात ही दूसरी है।
जैन अहिंसा पर दूसरा सब से बड़ा आक्षेप यह किया जाता है कि इस अहिंसा के प्रचार ने भारतवर्ष को कायर और गुलाम बना दिया है। इस आक्षेप के करनेवालों का कथन है कि अहिंसाजन्य पापों से डरकर भारतीय लोगों ने मांस खाना छोड़ दिया एवं यह निश्चय है कि मांस-भक्षण के बिना शरीर में बल और मन में शौर्य नहीं रह सकता। शौर्य और बल की कमी हो जाने के कारण यहाँ की प्रजा के हृदय से युद्ध की भावना बिल्कुल नष्ट हो गई जिससे विदेशी लोगों ने लगातार इस देश पर आक्रमण करके उसे अपने अधीन कर लिया । इस प्रकार अहिंसा के प्रचार से भारतवर्ष गुलाम हो गया और यहाँ की प्रजा पराक्रम-रहित हो गई।
अहिंसा पर किया गया यह आक्षेप बिल्कुल प्रमाण-रहित और युक्ति-शून्य है। इस कल्पना की जड़ में बहुत बड़ा अज्ञान भरा हुआ है। सब से पहले हम ऐतिहासिक दृष्टि से इस प्रश्न पर विचार करेंगे। भारत का प्राचीन इतिहास डङ्के की चोट इस बात को बतला रहा है कि जब तक इस देश पर अहिंसा-प्रधान जातियों का राज्य रहा तब तक यहाँ की प्रजा में शान्ति, शौर्य, सुख और सन्तोष यथेष्टरूप से व्याप्त थे। सम्राट् चन्द्रगुप्त और Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com