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भगवान् महावीर
छाल एक दिन वह अपते सामन्तो के साथ राज सभा में बैठा था। उस समय एक प्रसिद्ध चित्रकार ने राजसभा में प्रवेश कर उसका अभिवादन किया। और उपहार स्वरूप एक बड़ो सुन्दर रमणी का मनोहर चित्र उसको भेंट किया। उस चित्र को देखते ही राजा चण्डप्रद्योत ने कहा-“कुशल चित्रकार । तेरा चित्रकौशल सचमुच विधाता के समान है। ऐसा स्वरूप मानव लोक के अन्तर्गत कभी देखने में न आया, इसलिए तेरी की हुई इस चित्र कल्पना को धन्य है, यह सुन चित्रकार ने कहाः___ "राजन् ! यह केवल कल्पना ही नहीं हैं। इस चित्र में उल्लिखित रमणी इस समय भी कौशम्बी के राजा शतानिक के अन्तपुर में विद्यमान हैं। इसका नाम मृगावती है । यह मृगाक्षी राजा शतानिक को पटरानी है उसका यथार्थ रूप चित्रित करने में तो विश्वकर्मा भी असमर्थ हैं । मैंने तो उस रूप का किञ्चित आभास मात्र इस चित्र में अंकित किया है। उसका वास्तविक रूप तो वाणी के भी अगोचर है।"
इस बात को सुनते ही रमणी लोलुप चण्डप्रद्योत कामान्ध हो गया। उस समय वह नीति और अनीति के विचार को बिलकुल भूल गया। उसने उसी समय · कहा कि-"मृग को देखते हुए सिंह जिस प्रकार मृगी को पकड़ लेता है, उसी प्रकार शतानिक के देखते देखते मैं मृगावती को ग्रहण कर लूँगा।" ऐसा विचार कर उसने पहले एक दूत को राजा शतानिक के समीप भेजा। उस दूत ने शतानिक को जाकर कहा-“हे शतानिक राजा! अवन्ति नरेश चण्डप्रद्योत तुम्हें आज्ञा करता है कि
मृगावती के समान रत्न-जो कि दैव योग से तुम्हारे समान Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com