________________
२५३
भगवान् महावीर
अर्हन्त हूँ।" उसके इन मिथ्या बचनों को सुन गौतम स्वामी बोले "जमालि ! यदि तू सचमुच में ज्ञानी है तो बतला कि जीव और लोक शाश्वत है या अशाश्वत ?” इस प्रश्न का उत्तर देने में असमर्थ जमालि कौवे के समान मुख पसार कर चुपचाप बैठा रहा । तब भगवान ने कहा-"जमालि, यह लोक भिन्न भिन्न तत्वों से शाश्वत और अशाश्वत है । उसी प्रकार जीव भी शाश्वत और अशाश्वत है। द्रव्य रूप से यह लोक और जीव दोनों शाश्वत अर्थात् अविनाशो हैं पर प्रतिक्षण बदलते हुए पर्याय के रूप में वे अशाश्वत और विनाशो हैं। जिस प्रकार एक घड़ा मिट्टी की अपेक्षा से अविनाशी और घड़े की पर्याय अवस्था से विनाशी है-उसी प्रकार लोक और जीव को समझना चाहिये।"
प्रभु के इस यथार्थ कथन को उसने सुना पर मिथ्यात्व के उदय से उसका ज्ञान नष्ट हो रहा था इसलिए वह इस पर कुछ ध्यान न दे समवशरण से बाहर चला गया। एक बार बिहार करता हुआ जमालि "श्रावस्ती" नगरी में गया । प्रिय दर्शना भी एक हजार आर्जिकाओं के साथ वहीं "टक" नामक कुम्हार की शाला में उतरी हुई थी। यह कुम्हार परम श्रावक था। उसने प्रियदर्शना को भ्रम में पड़ी हुई देख कर विचार किया "किसी भी उपाय से यदि मैं इसे ठीक रास्ते पर लगा दूँ तो बड़ा अच्छा हो।" यह सोच कर उसने एक समय बाड़े में से पात्रों को इकट्ठे करते समय एक जलता हुआ तिनका बहुत ही गुप्त रीति से प्रियदर्शना के कपड़ों में डाल दिया। कुछ समय पश्चात् वन को जलता हुआ देख प्रियदर्शना बोली "अरे ढङ्क देख तेरे प्रमाद से मेरा यह वन जल गया।" ढङ्क ने कहा
Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
www.umaragyanbhandar.com