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भगवान् महावीर
भ्रष्ट हो जायगा, नष्ट हो जायगा।" उसके इन वचनों को सुन कर प्रभु के शिष्य सर्वानुभूति मुनि अपने को न सम्हाल सके । वे बोले-"अरे गौशाला । जिस गुरु ने तुझे दीक्षा और शिक्षा दी, उसी का तू इस प्रकार तिरस्कार कैसे करता है।" यह सुनते ही क्रोधित हो गौशाला ने दृष्टि विष 'सर्प की ज्वाला की तरह उन पर तेजोलेश्या का प्रहार किया । सर्वानुभूति मुनि उस ज्वाला से दग्ध होकर शुभ ध्यान से मरण पा स्वर्ग गये । अपनी लेश्या की शक्ति से गर्वित होकर गौशाला फिर प्रभु का तिरस्कार करने लगा। तब सुनक्षत्र नामक शिष्य ने प्रभु की निन्दा से क्रोधित हो गौशाला को कठोर वचन कहे । गौशाला ने उन्हें भी सर्वानुभूति की तरह भस्म कर डाला । इस से और भी गर्वित हो वह प्रभु को कटुक्तियां कहने लगा।
तब प्रभु ने अत्यन्त शान्ति पूर्वक कहा-"गौशाला ! मैंने ही तुझे शिक्षा और दीक्षा देकर शास्त्र का पात्र किया है । और मेरे ही प्रति तू ऐसे शब्द बोल रहा है। यह क्या तुझे योग्य है।" इन वचनों से अत्यन्त क्रोधित हो गौशाला ने कुछ समीप
आ प्रभु पर भी तेजोलेश्या का प्रहार किया। पर जिस प्रकार भयङ्कर बबण्डर पर्वत से टकरा कर वापस लौट जाता है, उसी प्रकार वह लेश्या भी प्रभु को भस्म करने में असमर्थ हो वापस लौट गई। और फिर अकार्य प्रेरित करने से क्रोधित हो उसने वापस गौशाला के ही शरीर पर प्रहार किया। जिससे गौशाला का सारा शरीर अन्दर से जलने लगा। पर जलते जलते भी ढीठ हो कर उसने प्रभु से कहा-"अरे काश्यप ! मेरी तेजोलेश्या
के प्रभाव से इस समय तू बच गया है। पर इससे उत्पन्न हुए Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com