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भगवान् महावीर निमित्त चारों वेद के पाठी भारत प्रसिद्ध ग्यारह ब्राह्मण बुलाये गये थे। इनके नाम निम्नाङ्कित हैं
१-इन्द्रभूति, अग्निभूति, वायुभूति, आर्यव्यक्त, सुधर्माचार्य, मण्डोपुत्र, मौर्यपुत्र, अकम्पित, अचलवृत्त, मैत्रेयाचार्य और प्रभासाचार्य ।
ये लोग अपने ज्ञान के बल से सारे भारतवर्ष में मशहूर थे। जब समवशरण में उपदेश सुनने के निमित्त हजारों देव
और मानव उस रास्ते से होकर जाने लगे तब यह सोच कर कि ये सब लोग यज्ञ में आ रहे हैं इन पण्डितों ने कहा "इस यज्ञ का प्रभाव तो देखो अपने मंत्रों से बुलाये हुए देवता प्रत्यक्ष होकर इधर आ रहे हैं। पर जब सब लोग वहाँ एक क्षण मात्र भी न ठहरते हुए आगे बढ़ गये तब तो इनको बड़ा आश्चर्य हुश्रा। उसके पश्चात् किस प्रकार लोगों से पूछ कर सबसे पहले इन्द्रभूति भगवान् से शाखार्थ करने गये और किस प्रकार पराजित हो उन्होंने दीक्षा ग्रहण कर ली ये सब बातें पूर्व खण्ड में लिखी जा चुकी हैं।
इन्द्रभूति की दीक्षा का समाचार सुन अग्निभूति प्रभु से शास्त्रार्थ करने के निमित्त आया । उसके आते ही प्रभु ने उसका स्वागत करते हुए कहा-“हे गौतम गौत्री अग्निभूति ! तेरे हृदय में यह सन्देह है कि कर्म है या नहीं ? यदि कर्म है तो प्रत्यक्षादि प्रमाणों से अगम्य होते हुए भी वे मूर्तिमान हैं। ऐसे मूर्तिमान कर्म प्रमूर्तिमान जीव को किस प्रकार बाँध लेते हैं ? अमूर्तिक जीव को मूर्तिमान कर्म से उपधात और अनुग्रह किस प्रकार होता है ? इस प्रकार का संशय तेरे मस्तक में घुस रहा है पर
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