________________
भगवान महावीर
१३० गये । ऐसे ही महावीर संसार के आदर्श हो सकते हैं; संसार ऐसे ही महावीर को अपना उद्धारक मान सकता है।
जो लोग महावीर स्वामी का विकास-क्रम नहीं मानते, जो जन्म से ही उन्हें देवता की तरह मानते हैं उनको उपरोक्त विवेचन मे अवश्य क्रोध एवं हास्य उत्पन्न होगा। पर जो लोग भगवान महावीर को प्रारम्भ से ही मनुष्य की तरह मानकर क्रम विकास के अनुसार, अन्त में ईश्वर की तरह मानते हैं उनको अवश्य इस कथन में कुछ न कुछ रहस्य मालूम होगा।
दीक्षा-संस्कार भगवान महावीर ने अपने उत्तम जीवन का अधिकांश भाग गृहस्थाश्रम के अंतर्गत सत्य और जोवन-रहस्य के तत्वों की शोध में व्यतीत कर दिया। जीवन के आदर्श पर लिखते हुए एक जैन लेखक लिखते हैं कि:
"All straining and striving. which is going on in the world, is the outcome of a thirst for happiness, it is on account of this insatiable thirst that ideal after ideal is conceived adbered for a time and then ultimately, when to be in sufficient, discarded and replaceb by a seemingly discovered better one.s.ome People spend their whole lives in tbus trying object after object for the satisiaction of this iplination for happiness.
जीवन के तीस वर्ष गृहस्थाश्रम में व्यतीत करने पर भगवान महावीर को यही अनुभव हुआ कि गृहस्थाश्रम "सत्य" है पर जीवन के लिए सन्यास उससे भी बड़ा सत्य है । और इसी कारण
अब मुझे उस बड़े सत्य को प्राप्त करने की आवश्यकता है । मेरा Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com