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भगवान् महावीर परिणित करने के हथियार-मात्र थे, और इस कारण सुदृष्ट की निन्दा का या इनकी स्तुति का कोई कारण न था। वायु जिस प्रकार सुगन्धित और दुर्गन्धित पदार्थों की गन्ध को रागद्वेष हीन भाव से लेकर विचरती है-उसी प्रकार महात्मा लोग भी मुख और दुःख दोनों के देनेवाले पर समान भाव रखते हैं। ___ एक बार भगवान महावीर विहार करते हुए “पेढाणा" नामक ग्राम के समीप पहुँचे । वहाँ पर एक वृक्ष पर दृष्टि जमा कर वे कार्यात्सर्ग भाव से समाधिस्थ हो गये। उस समय इन्द्रने अपनी सभा में उनके चरित्र बल की बहुत प्रशंसा की, उस प्रशंसा को सुन कर उस सभा में स्थित “सङ्गम" नामक एक देव जल उठा । उसने सोचा कि देव होकर भी इन्द्र एक साधारण मानव-योगी की इतनी अधिक स्तुति करता है, यह उसकी कितनी अनाधिकार चेष्टा है। अवश्य मैं उस तपस्वी के चरित्र को भ्रष्ट कर इन्द्र के इस कथन का प्रतिवाद करूंगा। इस प्रकार की दुष्ट भावनाओं को हृदयङ्गम कर वह देव भगवान महावीर के पास आया । उसने छः मास तक प्रभु पर जिन भयङ्कर उपसर्गों की वर्षा की है-उसे पढ़ते पढ़ते हृदय कांप उठता है। सब से पहले तो उसने भयङ्कर धूल की वर्षा की। उस रज-वृष्टि के प्रताप से भगवान का सारा शरीर ढक गया, यहाँ तक कि उन्हें श्वासोच्छास लेने में भी बाधा होने लगी, पर तो भी दैहिक मोह से विरक्त हुए महावीर उस विकट संकट में भी पर्वत की तरह स्थिर रहे । उसके पश्चात् उसने भयङ्कर
चीटियों और डांसों को उत्पन्न कर के उनके द्वारा प्रभु को Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com