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भगवान् महावीर
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being serious at every minute and so he had to keep his mind active forever by keeping observence of strict laws of conduct.
भगवान महावीर जीवन का महत्व समझते थे और इसी कारण उन्होंने अपने जीवन का एक मिनिट भी व्यर्थ न गवांया । क्योंकि उपयोगहीन अवस्था में अवश्य प्रमाद उत्पन्न हो जाता है। इसी से महावीर क्रमशः चारित्र के कठिन कठिन नियमों का पालन करते थे।
इसी सबल ज्ञान के कारण महावीर ने विपरीत परिस्थितियों में होते हुए भी आत्मशुद्धि का बंधन स्वीकार कर ज्ञान को चरित्र का रूप देने के लिए सब भोगों का भोग दे डाला। हम यदि किसी सत्य को जान कर उसको ग्रहण करने के निमित्त सब भोगों का भोग दे दें, तो वह सत्यज्ञान का भंडार हो जाय । जब तक हम अपने ज्ञान को चरित्र का रूप न दे दें वहां तक वह ज्ञान कल्पना के किले के समान मालूम होता है।।
चरित्र एक प्रवृत्ति है। शारीरिक और मानसिक प्रमाद और जीवन गाम्भीर्य का अभाव इसके बड़े दुश्मन हैं । चरित्र सम्पादन करने में बहुत बड़े परिश्रम की जरूरत होती है। अविछिन्न
आत्मनिरीक्षण, आत्मशिक्षण और आत्मयमन, ये तीनों अक्षुण चलते रहना चाहिये । जो बहुत गम्भीर हैं, उनका चरित्र अविच्छिन्न और अनुक्षण होता है, महावीर का चरित्र ऐसा ही था।
और इसी कारण उसके नियम भी बड़े कठिन मालूम होते हैं। ____ भगवान् महावीर पर उनके द्वादश वर्षीय प्रवास में कितने
कठिन कठिन उपसर्गों का आगमन हुआ था। भयङ्कर से भयङ्कर Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com