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भगवान् महावीर
अपनी माता को रक्षा और स्वयं पुनः पिता के पास आ गया ।
विश्वभूति का जीव महा शुभस्वर्ग में से च्यवकर सात स्वप्न देता हुआ मृगावती के गर्भ में आया। समय पूर्ण हुए पश्चात् मृगावती ने प्रथम वासुदेव को जन्म दिया, उसके पृष्ठ भाग में तीन पसलियां होने से उसका नाम "त्रिपृष्ट" रखा गया।
इधर "विशाखा नन्दी" का जीव अनेक भवों में परि भ्रमण करता हुआ "तुंगगिरी" नामक पर्वत पर “केशरी-सिंह" हुआ। वह शंखपुर के प्रदेश में उपद्रव करने लगा। इसी काल में “अश्वग्रीव" नामक प्रति वासुदेव बड़ा पराक्रमी राजा गिना जाता था। उसकी धाक सब राजाओं पर थी। एक समय उसने "रिपुप्रतिशत्रु" के पास कहला भेजा कि तुम तुंगगिरी जाकर शालिक्षेत्र की सिंह से रक्षा करो।" यह सुन कर राजा वहां जाने की तैयारी करने लगा। पर दोनों कुमारों ने उसे वहां जाने से रोका और वे स्वयं उधर को प्रस्थानित हुए। वहां जाकर "त्रिपुष्ट" ने वहां के रक्षकगोप लोगों से पूछा कि दूसरे राजा जब वहां आते हैं तो वे सिंह से किस प्रकार इन क्षेत्रों की रक्षा करते हैं ? और कब तक यहां रहते हैं ? गोप लोगों ने कहा कि दूसरे राजा प्रतिवर्ष यहां आते हैं और जब तक "शाली" काट न ली जाय तब तक यहीं रहते हैं। वे इस क्षेत्र में चारों ओर एक किला बना कर रहते हैं। यह सुन कर "त्रिपुष्ट" ने कहा कि इतने समय तक कौन यहां ठहरे, तुम मुझे वह सिंह बताओ मैं उसे मार कर हमेशा के लिए इस आपत्ति को काट दूंगा। यह सुन कर गोप लोगों ने तुंगगिरी की गुफा में बैठे हुए-सिंह को
बता दिया । हल्ला करने से क्रोधित होकर वह सिंह मुंह फाड़ कर Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com