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भगवान् महावीर
न्चलमा रंडक उद्यान में से निकाला है । तदनन्तर क्रोध में आकर उसने एक वृक्ष पर अपना मुष्टिप्रहार किया । उस प्रहार से उस वृक्ष के सब फूल टूट टूट कर गिर गये । जिनसे उनके नीचे की सब भूमि आच्छादित हो गई । उन फूलों को बतला कर विश्वभूति ने द्वारपाल से कहा-"यदि बड़े पिताजी पर मेरी भक्ति न होती तो मैं इन फूलों की तरह तुम सब लोगों के सिरों से पृथ्वी को
आच्छादित कर देता । पर उस भक्ति के कारण मैं ऐसा नहीं करना चाहता । लेकिन अब इस प्रकार के लंचनायुक्त भोग की मुझे बिलकुल आवश्यकता नहीं । ऐसा कह कर वह "सभूति' नामक मुनि के पास गया और दीक्षा ग्रहण की । उसे दीक्षित हुआ जान कर विश्वनन्दी अपने अनुज के साथ वहां आये और उससे बहुत क्षमा मांगते हुए उन्होंने राज्य ग्रहण की प्रार्थना की पर विश्वभूति को राज्य से बिल्कुल विमुख जान वे वापस घर चले गये ।
इसके पश्चात् विश्वभूति ने बहुत उग्र तपश्चर्या की जिससे उनका बदन बहुत कृश हो गया। एक बार विहार करते हुए वे मथुरा में आये उस समय वहां की राजकन्या से विवाह करने के निमित्त विशाखानन्दो भा वहां आया हुआ था। एक मास के उपवास का पारणा करने के निमित्त "विश्वभूति मुनि" नगर में प्रविष्ट हुए। जिस समय वे विशाखानन्दी की छावनी के पास जा रहे थे उसी समय गाय के साथ टकरा जाने के कारण विश्वभूति गिर पड़े। यह देख कर विशाखानन्दी हँसा और उसने कहा "झाड़ों पर के फूलों को एक साथ गिरा देने वाला तेरा वह बल कहाँ गया ?" यह सुनते ही विश्वभूति को अत्यन्त क्रोध आया Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
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