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भगवान् महावीर मैं तुझे इच्छित फल दूंगा, इतना कह कर इन्द्र ने उसे उसकी इच्छानुसार फल प्रदान किया तत्पश्चात प्रभु की वन्दना कर वह वापस चला गया।
"गौशाला" की कथा अपने चरण कमलों से पृथ्वी को पवित्र करते हुए भगवान् महावीर अनुक्रम से राजगृह नगर में आये । उस नगर के समीप नालन्दा नामक एक भूमि भाग था । उस भूमि भाग की एक विशाल शाला में प्रभु पधारे। उस स्थान पर वर्षाकाल निर्गमन करने के निमित्त उन्होंने लोगों की अनुमति ली । तत्पश्चात् मासक्षपण ( एक एक मास के उपवास) करते हुए प्रभु उस शाला के एक कोने में रहने लगे।
उस समय में "मंखली" नामक एक मंख्य था, उसकी स्त्री का नाम भद्रा था। ये दोनों पति-पत्नि चित्रपट लेकर स्थान स्थान पर घूमते थे । अनुक्रम से फिरते हुए ये "शखण" नामक ग्राम में गये । वहां एक ब्राह्मण को गौशाला में उसे एक पुत्र हुआ। इससे उसका नाम भी उन्होंने "गौशाला" रक्खा । जब वह अनुक्रम से युवक हुआ तब उसने अपने पिता का रोजगार सीख लिया । “गौशाला" स्वभाव से हो कलह प्रिय था। माता पिता के वश में न रहता था। जन्म से ही यह लक्षणहीन
और विचक्षण था। एक बार वह माता पिता के साथ कलह करके स्वतंत्र भिक्षा के लिए निकल पड़ा। और घूमता घूमता गजगृह नगर में आया। जिस शाला को भगवान महावीर ने
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