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भगवान् महावीर
सकता है । इसलिये उन्होंने केवल ऐसे ही उपाय किये जिससे मनुष्य जाति को सत्य की ओर रुचि हो, लोगों के अन्तःकरण में सत्य की स्थाई छाप बैठ जाय । वे परिणामदर्शी थे । वे जानते थे कि केवल अधिक संख्या में समाज को बढ़ाने से कुछ लाभ नहीं। कुछ समय तक तो वह दुनिया के पर्दे पर चलता रहता है, पर ज्योंही उसमें कुछ विशृंखलता उत्पन्न हुई कि, त्योंही छिन्न भिन्न हो जाता है। यहाँ तक कि उसका कुछ चिन्ह तक शेष नहीं रह जाता, लोक का कल्याण और अपने समाज की संख्या बढ़ाना ये दोनों कार्य बिल्कुल जुदे जुदे हैं । समाज का सङ्गठन करना अथवा उसकी संख्या बढ़ाना यह तो मनुष्य की व्यवस्थापक शक्ति पर निर्भर है। पर लोक कल्याण के लिए विशुद्ध प्रेम, निस्वार्थ भावना, और एक प्रकार की अलौकिक शक्ति की आवश्यकता है।
अनुयायियों की संख्या बढ़ाना यह महावीर का एक गौण लक्ष्य था, उनका प्रधान लक्ष्य तो लोक कल्याण ही था । उन्होंने हमेशा कपने सुखद-सिद्धान्तों को जनता के हृदय में गहरे पेठा देने का प्रयत्न किया। उनके अनुयायी "बुद्ध" और
और "गौशाला" की अपेक्षा कम थे। पर जितने भी थे, पके थे। उनकी रग रग में महावीर का उपदेश व्याप्त हो गया था,
और यही कारण है कि केवल संख्या के बल में श्रद्धा रखने वाले "गौशाला" का एक भी अनुयायी आज भारतवर्ष के किसी भी कोने में नहीं मिलता। उसकी फिलासफी के खण्डहर भी कहीं देखने को नहीं मिलते। इसी प्रकार बौद्धधर्म-जिसने अशोक के समय में सारे. भारतवर्ष पर अपना अधिकार कर Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com