________________
भगवान् महावीर
१८२
शिशु हो या स्त्री हो चाहे जो हो गुण का पात्र है वही पूजनीय है। _ऐसा मालूम होता है कि उस काल में समाज के अन्तर्गत शद्रों ही की तरह स्त्रियों के अधिकारों को भी कुचल दिया गया होगा। सम्भवतः इसी कारण शूद्रों ही की तरह स्त्रियों के लिये भी महावीर को इस प्रकार का नियम बनाना पड़ा होगा ।
जैन-धर्म पुरुष और स्त्री की आत्मा को समान स्वतन्त्रता देता है । जो लोग यह मानते हैं कि स्त्री को हिन्दू धर्म-शास्त्रों में (Individual liberty) व्यक्ति स्वातन्त्र्य नहीं दिया गया है ने लोग बड़े भ्रम में है। केवल स्त्री और पुरुष को समान स्वतन्त्रता देकर ही महावीर के उदारहृदय ने विश्राम न लिया । बल्कि प्राणी-मात्र चर और अचर सब को समान स्वतन्त्रता का देने वाला पहला महापुरुष महावीर था। वह महावीर ही था जिसने संसार के प्राणी मात्र की और आत्मा की स्वतन्त्रता के निमित्त ही अपने जीवन को विसर्जन कर दिया ।
महावीर के आश्रम में जितना दरजा श्रमण का माना जाता था, आर्यिका का भी उतना ही माना जाता था। पुरुष स्त्री के चरित्र की रक्षा के लिए उन्होंने कितने ही भिन्न भिन्न आचारों का निर्माण किया था । महावीर जानते थे कि, स्त्रीत्व और पुरुषत्व केवल कर्मवशात् प्राप्त होता है। लेकिन स्त्री और पुरुष की समान शक्तियां होती हैं । जिस प्रकार एक पुरुष की अपेक्षा दूसरे पुरुष में संयोगवशात् आत्मिकशक्ति में कमीबेशी हो जाती है। इसी प्रकार स्त्री और पुरुष नामक व्यक्तियों में कमीबेशी हो जाती है। इसलिये यदि हम पुरुषों की स्वतन्त्रता के Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com