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भगवान् महावीर
८. अंकापित गौतम गोत्र ॥ ६०० श्रमणों का ९. अचल वृत हरितायन गौत्र । एक वृक्ष १०. मेत्रेयाचार्य काण्डीय गौत्र ११. प्रभासाचाय्य
, इस प्रकार महावीर के ग्यारह गणधर नौ वृन्द और ४२०० श्रवण मुख्य थे। इसके सिवाय और बहुत से श्रमण और अजिंकाएँ थीं, जिनकी संख्या क्रम से चौदह हजार और छत्तीस हजार थीं। श्रावकों की संख्या ६५००० थीं, और श्राविकाओं की संख्या ३,१८,००० थीं।
इस स्थान पर एक बात बड़ी विचारणीय है। कितने ही पाश्चात्य विद्वान प्राचीन भारतवर्ष के लोगों पर यह एक बड़ा आरोप लगाते हैं कि उस समय के शास्त्रों में "स्त्री" को नरक की खानि कहा है। उसे संसार के बन्धन का कारण बतलाया है । हम इस बात को स्वीकार करते हैं कि हिन्दू धर्म-शास्त्रों में व्यक्ति के जीवन के लिए इस प्रकार की बातें कही गई हैं । पर गृहस्थावस्था के लक्ष्य बिन्दु से ऐसा कहीं भी नहीं कहा गया है। बल्कि बिना सुयोग्य पत्नी के गृहस्थाश्रम को अधूरा भी बतलाया है । गृहस्थाश्रम के अन्तर्गत स्त्रो का उतना ही आसन माना गया है जितना आज कल के पाश्चात्य समाज में माना जाता है।
भगवान महावीर और पार्श्वनाथ जो जीवन-आदर्श की अन्तिम सीढ़ो पर विहार कर रहे थे, उनको भी यह बात खटकती थी उन्होंने भी साफ कहा है कि:"शिशुत्वं खैण्यं वा यदस्तु तत्तिष्ठतु तदा ।
गुणाः पूजा स्थानं गुणिषु न च लिङ्ग न च वयः” Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com