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भगवान् महावीर
१६२ यह दुनिया तुम्हारे पुण्यबल के प्रताप से प्रगट नहीं हुई है, समाज तुम्हारे सुख पर अवलम्बित नहीं है। प्रत्युत तुम्हारा सुख समाज की रुचि पर अवलम्बित है। ऐसी दशा में समाज के किसी व्यक्ति के प्रति तुम्हारी निराकार वृति तुम्हारी अधमता का सूचक है।
"एक आदमी की मालकियत पर उसके सिवाय दूसरे किसी का अधिकार नहीं है; यह नियम केवल व्यवहार काण्ड में अव्यवस्था न होने देने के लिए एवं समाज की शान्ति रक्षा के निमित्त केवल राज्य सत्ताओं ने बना लिया है। लेकिन स्मरण रखना चाहिये कि यह लौकिक नियम विश्व के राज्य तन्त्र को चलाने वाली दिव्य सत्ता पर जरा भी बन्धन नहीं डाल सकता, लोगों की स्वार्थे वृति पर एक प्रकार का समय बनाये रखने के लिए राज्य सत्ताओं ने" एक की वस्तु पर दूसरा आक्रमण न करे इस लौकिक विधान की रचना को है। लेकिन प्रकृति के महा. राज्य में इस प्रकार के स्वार्थों की टक्कर बिलकुल नहीं होती और इसलिए उसमें प्रवेश करने वाले प्रत्येक व्यक्ति को किसी भी वस्तु पर एकाधिकार की संकीर्ण भावनाओं को छोड़ देना चाहिये। यदि राजसत्ताओं के द्वारा चलाया हुआ उपरोक्त लौकिक नियम प्रकृति का मौलिक नियम होता तो महावीर, बुद्ध, ईसा आदि महापुरुष उस नियम का कदापि उल्लंघन न करते । पर जब उन्होंने अपनी उपार्जित की हुई वस्तु को सारे विश्व के कल्याण के निमित्त बांट दिया तो फिर उनको अपना आदर्श मानने वाले हम लोगों को भी मानना होगा कि व्यक्तिगत स्वार्थ
को ऐसी भावनाएं प्रात्मा का अधःपतन करती हैं। उन्हीं भावShree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com