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भगवान् महावीर
क्षमा, समता और दया की पवित्र धारायें उस सभा में बैठनेवाले प्रत्येक प्राणी के हृदय में शतधार और सहस्रधार से प्रवाहित हो रही थी।
यह समवशरण “अपाया" नामक नगरी के बाहर रचा गया था। जिस समय समवशरण सभा में प्रभु का उपदेश सुनने के निमित्त हजारों पुरुष स्त्री जा रहे थे। ठीक उसी समय में किसी धनाढ्य गृहस्थ के यहाँ इन्द्रभूति अग्निभूति और वायुभूति आदि ग्यारह ब्राह्मण पण्डित यज्ञ करवा रहे थे। उस काल में इनकी विद्वत्ता की ख्याति बहुत दूर दूर तक फैली हुई थी । इन लोगों ने असंख्य नर-नारियों को उधर की ओर
आते हुए देख कर पहले तो यह सोचा कि ये सब हमारे इस यज्ञ को देखने के निमित्त आ रहे हैं और यह जानकर उन्हें बड़ा आनन्द भी हुआ। पर जब उन्होंने देखा कि इन आगा. न्तक व्यक्तियों में से किसी ने उनकी ओर आँख उठा कर भी न देखा, तो उन्हें बड़ा आश्चर्य हुआ। अन्त में किसी से पूछने पर मालूम हुआ कि ये सब लोग सर्वज्ञ प्रभु महावीर की बन्दना करने को जा रहे हैं। इन्द्रभूति ने यह सुन कर अपने मन में कहा कि संसार में मेरे सिवाय भी दूसरा कोई सर्वज्ञ है। जिसके पास ये सब लोग दौड़े जा रहे हैं, सब से बड़ा आश्चर्य तो यह है कि इस समय परम पवित्र यज्ञ-मण्डल की ओर भी इनका ध्यान आकर्षित नहीं होता। सम्भव है कि जिस ढङ्ग का इनका सर्वज्ञ होगा, उसी ढङ्ग के ये भी होंगे। ऐसा सोच वह अप्रतिभसा होकर चुप हो गया । ___ इसके कुछ समय पश्चात् जब सब लोग भगवान महावीर Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com