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भगवान् महावीर
अज्ञान और अत्यन्त दुःख की ज्वाला में जल रहा है, मेरे उपदेश से लाभ उठा सकता है। अज्ञान के चक्र में छटपटाता हुआ प्रत्येक जीव चाहे वह तिर्यच हो चाहे मनुष्य, आर्य्य हो चाहे मेच्छ, ब्राह्मण हो या शूद्र, पुरुष हो या स्त्री मेरे धर्म के उदार झण्डे के नीचे आ सकता है । सत्य का प्रत्येक इच्छुक मेरे पास
आकर अपनी आत्म-पिपासा को बुझा सकता है। ___इस घोषणा के प्रचारित होते ही हजारों सत्य के भूखे प्राणी महावीर की शरण में आने लगे। वे भी आये जो मोक्ष के इच्छुक थे, वे भी आये जो अज्ञान के चक्र में दुखी होकर भटक रहे थे। महावीर की उदार आत्मा ने सबका स्वागत किया अपने दिव्य उपदेशामृत से उन्होंने सबका सन्तोष किया ।
भगवान महावीर ने धर्म की सत्ता अपने हाथ में न रक्खी थी। वे किसी भी व्यक्ति को सत्य का स्वरूप बतला देते थे। जिसके जी में जचता वही उसे ग्रहण करके उनका शिष्य हो जाता था । चाहे ब्राह्मण हो चाहे शूद्र, चाहे पुरुष हो चाहे स्त्री, जो उनके बतलाये हुए सत्य को मानता और उसके कथनानुसार चरित्र का पालन करता उसीको वे शिष्य की तरह ग्रहण कर लेते। . इधर तो महावीर के इस उदार धर्म में हजारों लोग प्रविष्ट हो रहे थे। उधर बुद्ध की आवाज भी दुखी लोगों को आमंत्रित कर रही थी। हजारों लाखों आदमी ब्राह्मणों के अनुदार पंजे से निकल कर उस झण्डे के नीचे भो एकत्रित हो रहे थे।
शुभ परिणाम इसका यह हुआ कि समाज के अन्तर्गत मनुष्यत्व से रहित जो निष्ठुर अत्याचार होते थे वे बन्द हो गए,
यज्ञ की पवित्र वेदी पर लाखों पशुओं का काटा जाना भी बन्द Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com